विकास दुबे से जुड़ी सभी मुठभेड़ों में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जैसे तेवर दिखे, यदि वह बुधवार को आने वाले फ़ैसले में परिलक्षित होते हैं और सुप्रीम अदालत की देख-रेख में एक जांच आयोग गठित होता है, तो भविष्य की यह जांच यूपी में 'आपराधिक न्याय प्रबंधन तंत्र’ को सिर के बल खड़ा कर देगी, इतना तय है।
क्या फर्जी एनकाउंटर मामलों में योगी सरकार और पुलिस अधिकारी नपेंगे?
- विचार
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- 21 Jul, 2020

पुलिस एनकाउंटर या प्रशासन द्वारा खुद सज़ा दे देना एक जघन्य अपराध है। यह संपूर्ण समाज के विरुद्ध जानबूझ कर की जाने वाली हत्या है। यह अगर 'राजसत्ता' (स्टेट) की इच्छा से हो रही है या राजसत्ता इस पर आँखें मूंदे बैठी है तो यह एक ख़तरनाक मोड़ पर पहुँच जाने को दर्शाती है और संविधान प्रदत्त क़ानून के शासन पर ही सवाल खड़ा हो जाता है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय परिसर में उपस्थित 'पीपल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज़' (पीयूसीएल) के वकील संजय पारिख (जिन्होंने विकास दुबे के मामले में भी हस्तक्षेप की अर्ज़ी लगा रखी थी) को सुनवाई के दौरान सूचित किया कि यूपी में फर्जी एनकाउंटरों पर दायर उनकी याचिका को 4 हफ़्ते बाद सुना जायेगा। इससे ज़ाहिर होता है कि न्यायिक दृष्टि से जुलाई और अगस्त के महीने योगी सरकार के लिए भारी पड़ने वाले हैं।