कश्मीर में छह महीने राज्यपाल शासन बढ़ाने के लिए संसद में लाये प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सरकार की तरफ़ से जो भी भाषण हुए उसमें जवाहरलाल नेहरू का नाम बार-बार आया। सत्ताधारी लोगों के भाषणों को सुनकर ऐसा लगा कि कश्मीर की समस्या के लिए केवल जवाहरलाल नेहरू ज़िम्मेदार थे। चुनावी सभाओं में तो नेता लोग कुछ भी कह सकते हैं लेकिन संसद के पवित्र कक्ष में ऐसी बातों को कहने से परहेज किया जाना चाहिए। इस बात में कोई शक की गुँजाइश नहीं है कि देश की आज़ादी महात्मा गाँधी की अगुवाई में हासिल की गई थी लेकिन उस सारी प्रक्रिया में जवाहरलाल नेहरू का योगदान किसी से कम नहीं है और नेहरू के योगदान को कम करने से किसी को कोई लाभ नहीं होने वाला है।