पिछले नवम्बर बुरी तरह कोरोना की चपेट में आ गया। फेफड़ों में भी खासा फाइब्रोसिस फैल गया था। दूर बैठे परिजनों ने दिल्लीवासी भाई के ऊपर यह ज़िम्मेदारी थोप दी कि मुझे कैसे भी धर-पकड़ कर एक मशहूर मॉल के बगल में स्थित उस पांच सितारा अस्पताल में भर्ती करवा दे। मानो उसके नाम से ही कोरोना डरकर भाग जाएगा। घर पर ही अच्छा भला इलाज चल रहा था। जाने माने चिकित्सक डॉ. मोहसिन वली और उनकी सहयोगी डॉ. गायाने मोव्सिस्यान सईद की देखभाल में! खाने वाली दवाइयों के अलावा उनके क्लिनिक से कम्पाउण्डर रोज़ आकर आठ-दस इंजेक्शनों के मिश्रण का ड्रिप चढ़ा जाता। बुखार उतरने लगा था। अलबत्त्ता कमजोरी बहुत थी फिर भी अस्पताल जाने का इरादा नहीं बन पा रहा था, किन्तु परिजनों की अपनी जिद्द होती है।

फ़ाइल फ़ोटो
कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया है। प्रतिदिन साढ़े तीन-चार लाख के दायरे में संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है। उसी अनुपात में मौतें भी हो रही हैं। बार-बार यह सवाल ज़हन में उठता है कि आख़िर चूक कहाँ हुई।
लाख तर्कों के बावजूद मुझे लाद-पाद कर अस्पताल के एकल खर्चीले कमरे में पहुँचा दिया गया।
यह नवंबर 2020 की बात थी जब अधिकतम मामले पिच्चानवे-छियानवे हज़ार तक पहुँचकर नीचे लुढ़कने लगे थे। आज मई 2021 में इस माहामारी ने जिस विकराल रूप को धारण कर लिया है वह कल्पना से परे है। प्रतिदिन साढ़े तीन-चार लाख के दायरे में संक्रमित लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है। उसी अनुपात में मौतें भी हो रही हैं। बार-बार यह सवाल ज़हन में उठता है कि आख़िर चूक कहाँ हुई। या हमने अपनी पुरानी ग़लतियों से कुछ भी न सीखने की कसम खा रखी है। इन दो लहरों के बीच हमें छह महीनों से भी ज़्यादा का वक़्त मिला था। लेकिन आधारभूत चिकित्सकीय सुविधाओं पर ध्यान देने की बजाय हम चुनावों, धार्मिक अनुष्ठानों और मेलों में लगे रहे।