पिछले नवम्बर बुरी तरह कोरोना की चपेट में आ गया। फेफड़ों में भी खासा फाइब्रोसिस फैल गया था। दूर बैठे परिजनों ने दिल्लीवासी भाई के ऊपर यह ज़िम्मेदारी थोप दी कि मुझे कैसे भी धर-पकड़ कर एक मशहूर मॉल के बगल में स्थित उस पांच सितारा अस्पताल में भर्ती करवा दे। मानो उसके नाम से ही कोरोना डरकर भाग जाएगा। घर पर ही अच्छा भला इलाज चल रहा था। जाने माने चिकित्सक डॉ. मोहसिन वली और उनकी सहयोगी डॉ. गायाने मोव्सिस्यान सईद की देखभाल में! खाने वाली दवाइयों के अलावा उनके क्लिनिक से कम्पाउण्डर रोज़ आकर आठ-दस इंजेक्शनों के मिश्रण का ड्रिप चढ़ा जाता। बुखार उतरने लगा था। अलबत्त्ता कमजोरी बहुत थी फिर भी अस्पताल जाने का इरादा नहीं बन पा रहा था, किन्तु परिजनों की अपनी जिद्द होती है।