राष्ट्रपति की मुहर लगते ही नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 अब क़ानून बन चुका है। आज की तारीख़ में यह भारत का एक अति संवेदनशील राजनीतिक विषय है। क़ानून बनने से पहले इस विधेयक के लोकसभा एवं राज्यसभा में पारित होने के समय से ही तीखी बहस, आरोप-प्रत्यारोप और हर तरह के राजनीतिक दाँव पेच देखने को मिल रहे थे। पर अब एक और विकट स्थिति पैदा होने जा रही है जिसका भारत के संघीय ढाँचे पर दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। यह विकट स्थिति है- ग़ैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारें विरोध कर रही हैं तो केंद्र सरकार इसे कैसे लागू करा पाएगी?
राज्य विरोध कर रहे हैं तो केंद्र कैसे लागू करा पाएगा नागरिकता क़ानून?
- विचार
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- 17 Dec, 2019

ग़ैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारें विरोध कर रही हैं तो केंद्र सरकार नागरिकता क़ानून को कैसे लागू करा पाएगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में टीम इंडिया का मतलब केंद्र की सरकार और राज्यों के मुख्य मंत्रियों की मिलीजुली टीम को बताया था? इसी टीम पर भारत को आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी थी। अब क़रीब आधी टीम तो इस क़ानून के ख़िलाफ़ दिख रही है। टीम के खिलाड़ी आपस में ही लड़ रहे हैं तो फिर देश का क्या होगा?
राजनीतिक दलों ने अपने वैचारिक नीति एवं चुनावी रणनीति को ध्यान में रखते हुए इस विधेयक पर अपने दृष्टिकोण रखे और संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही में हिस्सा लिया। उसी समय यह साफ़ हो रहा था कि जिन दलों ने संसद में इस विधेयक का विरोध किया है, उनकी अगर राज्यों में सरकारें हैं तो वे अपने राज्य में इस क़ानून का विरोध अवश्य करेंगी। तत्काल पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब की राज्य सरकारों ने नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू करने से इनकार कर दिया। मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की सरकारों ने भी ऐसे संकेत दिए हैं कि वे भी इस क़ानून को अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगी। अगर इन सरकारों ने ऐसा किया तो भारतीय संवैधानिक व्यवस्था और संघीय ढाँचे को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। अभी भारत के 17 राज्यों में बीजेपी या उसके गठबंधन एनडीए की सरकार है और तेरह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में नहीं है। क्या ये तेरह राज्य/केंद्र शासित प्रदेश इस क़ानून को मानने से साफ़ इनकार कर देंगे?