“समाचार पत्रों की वास्तविक ज़िम्मेदारी है, लोगों को शिक्षित करना, लोगों के दिमाग़ की सफ़ाई करना, उन्हे संकुचित सांप्रदायिक विभाजन से बचाना, और सार्वजनिक राष्ट्रवाद के विचार को प्रोत्साहित करने के लिए सांप्रदायिक भावनाओं का उन्मूलन करना। लेकिन ऐसा लगता है कि उनका प्रमुख उद्देश्य अज्ञानता को फैलाना, सांप्रदयिकता और अंधराष्ट्रीयता को फैलाना, लोगों को सांप्रदायिक बनाकर मिश्रित संस्कृति और साझा विरासत को नष्ट करना हो गया है।”
कंगना के बयान पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले और अधिक हिंसक
- विचार
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- 13 Nov, 2021

1947 की आज़ादी को 'भीख में मिली आज़ादी' बताना ऐसे है जैसे पृथ्वी पर जीवित व्यक्ति वायु के अस्तित्व को खारिज कर दे, लेकिन क्या इसके लिए कंगना की गरिमा को चोटिल करना जायज है? क्या एक महिला का इस तरह अपमान किसी भी रूप में सही है?
कीर्ति में मई 1928 में भगत सिंह के छपे एक लेख ‘रीलिजन एण्ड फ्रीडम स्ट्रगल’ के इस अंश को ध्यान से पढ़िए और यह समझने की कोशिश कीजिए कि हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के महान नायक मीडिया से क्या आशा करते थे। ब्रिटिश शासन के समय हो सकता है इस आशा को पूरा करने के लिए मीडिया के पास अदम्य साहस की ज़रूरत होती लेकिन आज जब भारत में हमारे द्वारा एक चुनी हुई सरकार है तब ऐसी आशा करना साहस नहीं “रीढ़” से जुड़ा मसला है।