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आज़ाद, जितिन की उपेक्षा: ख़बरदार, गांधी परिवार की सल्तनत को चुनौती दी तो…

कांग्रेस शायद अब भी उसी दौर में जी रही है, जब उसका एकछत्र शासन चला करता था। गांधी परिवार के निज़ाम को चुनौती देने की पार्टी के किसी नेता की जुर्रत नहीं होती थी। आज़ादी के बाद से अब तक कुछ नेताओं ने गांधी परिवार के निज़ाम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश की लेकिन उनमें से ममता बनर्जी, शरद पवार को छोड़कर कोई और ख़ुद के सियासी वजूद को जिंदा नहीं रख सका। आवाज़ उठाने वालों को या तो पार्टी से बाहर जाना पड़ा या फिर मजबूर होकर पार्टी नेतृत्व के आदेश को मानना पड़ा। 

लेकिन तब हालात अलग थे, पार्टी मजबूत थी। अब लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी वही ठसक, वही अकड़ गांधी परिवार में बरकरार है और यह सीधे-सीधे पार्टी के ताबूत में अंतिम कील ठोकने जैसा है। 

जब से कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी आलाकमान को चिट्ठी लिखी है, तभी से ये नेता निशाने पर हैं। उन्हें लगातार इस बात का अहसास कराया जा रहा है कि उन्होंने पार्टी में सक्रिय नेतृत्व की ज़रूरत या आत्ममंथन की बात कहकर कोई अज़ीम गुनाह कर दिया है।

यहां बात हो रही है उत्तर प्रदेश कांग्रेस द्वारा रविवार रात को घोषित की गई कमेटियों से वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद को बाहर रखे जाने की। ये सभी नेता चिट्ठी लिखने वालों में शामिल थे। 

बयानबाज़ी करने वालों को जगह क्यों?

लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस के जिन दो बड़े नेताओं ने ग़ुलाम नबी आज़ाद के ख़िलाफ़ खुलकर बयानबाज़ी की, उन्हें पार्टी से निकालने की मांग की, कांग्रेस ने उन्हें इन कमेटियों में स्थान दिया है तो फिर आज़ाद के अलावा उत्तर प्रदेश से ही आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को जगह क्यों नहीं दी गई। ग़ुलाम नबी आज़ाद कई बार उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रह चुके हैं। 

आज़ाद के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करने वाले ये दो आला नेता निर्मल खत्री और नसीब पठान हैं। निर्मल खत्री 1970 से कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के अलावा सांसद भी रह चुके हैं। जबकि नसीब पठान दो बार एमएलसी रहने के अलावा संगठन में भी जिम्मेदारी निभा चुके हैं। पहले जानते हैं कि इन दोनों नेताओं ने क्या कहा था- 

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चिट्ठी को लेकर कांग्रेस कार्यसमिति में हुए बवाल के बाद ग़ुलाम नबी आज़ाद ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई को इंटरव्यू दिया था। उनके इस इंटरव्यू को लेकर खत्री ने एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखकर ग़ुलाम नबी आज़ाद को बुरी तरह निशाने पर ले लिया था। 

‘कांग्रेस का सत्यानाश किया’

खत्री ने कहा था, ‘आज़ाद ने अपने इंटरव्यू में कुछ राज्यों का जिक्र किया जिसमें यह दावा किया कि उन्हीं के दम पर उन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन आप उत्तर प्रदेश को भूल गये जहां पर जब-जब आप प्रभारी बन कर आये कांग्रेस का सत्यानाश किया।’ 

खत्री ने कहा था, ‘वर्ष 1996 में आज़ाद ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीएसपी से समझौता किया, नतीजा कोई खास नहीं निकला। 2017 में आज़ाद ने एसपी से समझौता किया लेकिन सीट पहले से भी कम होकर 7 के आंकड़े पर आ गयी।’

वरिष्ठ कांग्रेस नेता खत्री ने कहा था कि यानी आज़ाद जब जब-जब उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में आये प्रदेश में कांग्रेस बैक गियर में ही जाती रही।

‘आज़ाद को बाहर करे पार्टी’

इसके अलावा नसीब पठान ने चिट्ठी विवाद के बाद कहा था कि पार्टी को आज़ाद को बाहर कर देना चाहिए। पठान ने कहा था, ‘कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के बाद पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि यह विवाद ख़त्म हो चुका है। लेकिन आज़ाद ने इसके बाद भी मीडिया से बात की और इसे अपने फ़ेसबुक पेज पर डाला।’ 

नसीब पठान ने कहा था कि ऐसा करके आज़ाद ने पार्टी के अनुशासन को तोड़ा है और अब उन्हें पार्टी से आज़ाद कर दिया जाना चाहिए। 

जितिन प्रसाद का विरोध 

यहां याद दिलाना ज़रूरी होगा कि चिट्ठी विवाद के बाद जितिन प्रसाद का उत्तर प्रदेश में अपने ही जिले में जोरदार विरोध हुआ था और पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की मांग की थी। तब चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले एक और नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल जितिन प्रसाद के समर्थन में उतर आए थे। 

लखीमपुर-खीरी जिला कांग्रेस कमेटी ने सोनिया गांधी को पत्र भेजकर कहा था कि जिन लोगों ने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, ऐसे लोगों की कांग्रेस में कोई आस्था नहीं है।

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कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

बहरहाल, जिन कमेटियों की घोषणा उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से की गई है, उनमें निर्मल खत्री का नाम ट्रेनिंग एंड कैडर डेवलपमेंट कमेटी में पहले नंबर पर रखा गया है जबकि नसीब पठान को प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन कमेटी में जगह मिली है। होना तो यह चाहिए था कि इन नेताओं को पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़ाद के ख़िलाफ़ बयान देने पर फटकार लगाई जानी चाहिए थी लेकिन हुआ इसके उलट कि इन्हें अहम कमेटियों में जगह दे दी गई।

Congress Dissenters sideline in UP committees  - Satya Hindi
उत्तर प्रदेश पर है प्रियंका गांधी वाड्रा का फ़ोकस

2022 में होगी मुश्किल 

लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से ही राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का पूरा जोर सिर्फ़ और सिर्फ़ उत्तर प्रदेश पर है। यहां कांग्रेस कमेटी के ब्लॉक, जिला स्तर तक के चयन का मामला हो या आम लोगों से जुड़े छोटे-छोटे मुद्दे, प्रियंका लगातार सक्रिय रही हैं। उनका सीधा लक्ष्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को फिर से खड़ा करना है। 

प्रियंका को यह समझना होगा कि ग़ुलाम नबी आज़ाद, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेताओं की खुलेआम उपेक्षा करके संगठन को खड़ा करना या अगले विधानसभा चुनाव में कोई कमाल करने की उम्मीद रखना बेमानी होगा।

क्योंकि ग़ुलाम नबी आज़ाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस की राजनीति से लंबे वक्त तक जुड़े रहे हैं और आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश से ही आते हैं। 

हठ छोड़े कांग्रेस आलाकमान

ऐसे में कांग्रेस आलाकमान को अपना हठ छोड़कर इतने ख़राब समय में पार्टी को फिर से खड़ा करने में अपनी ताक़त झोंकनी चाहिए न कि आत्ममंथन या संगठन के चुनाव की बात कहने वाले नेताओं की उपेक्षा करके। क्योंकि इन नेताओं का भी अपना क़द है, ऐसे में युवा नेताओं के सामने अगर आप उन्हें बार-बार उपेक्षित करेंगे तो हो सकता है कि देर-सबेर वे पार्टी को अलविदा कह दें या बीजेपी का दामन थाम लें, इसलिए कांग्रेस आलाकमान को इस मुश्किल वक्त में सुल्तानों जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। 

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