16 अगस्त को भारत के चुनाव आयोग ने विज्ञान भवन में प्रेस वार्ता करके राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा करने का एक निमंत्रण पत्रकारों के लिए जारी किया था लेकिन दिन में जब वार्ता हुई तो प्रेस के सभी पत्रकार मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा की गयी घोषणा से आश्चर्य में थे क्योंकि सभी को अपेक्षा थी कि देश के 4 राज्यों की विधानसभा और अन्य खाली पड़ी विधानसभा व लोकसभा की सीटों पर भी उप चुनावों की घोषणा होगी। लेकिन इसके विपरीत केवल जम्मू कश्मीर और हरियाणा की विधानसभाओं के चुनावों की ही घोषणा हुयी। चुनाव आयोग ने अन्य राज्यों के चुनावों को साथ न करवाने के जो तर्क दिए वो किसी भी कसौटी पर संतोषजनक नहीं माने जा रहे। स्वतन्त्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में निरंतर होते रहने वाले चुनावों पर टिप्पणी करते हुए एक समय में एक बार ही चुनाव करवाये जाने "वन नेशन वन इलेक्शन" की निति को प्रतुस्त किया था लेकिन चुनाव आयोग ने अगले ही दिन प्रधानमंत्री के एक विचार और नीति की धज्जियाँ उड़ा दी या यूँ कहा जाये कि उस नीति की व्यावहारिकताओं पर ही सवल खड़े कर दिए।
विधानसभा चुनाव: हरियाणा, जम्मू कश्मीर में किसका पलड़ा भारी?
- राजनीति
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- 18 Aug, 2024

हरियाणा और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। जानिए, किस पार्टी की मज़बूत स्थिति और पिछले चुनाव में क्या रहा था परिणाम।
केंद्रीय चुनाव आयोग की घोषणा भी सवालों के घेरे में खुद ही आ गई। केवल चुनिंदा दो राज्यों में चुनाव कराने को लेकर। चुनाव आयोग का ऐसा निर्णय किस राजनीति प्रेरित विवेक से किया गया है। यह सीधे सीधे सत्ताधारी दल को एक खास सुविधा देने के उद्देश्य से किया गया है, ऐसी संभावना को बिल्कुल खारिज भी नहीं किया जा सकता है। संविधान अनुरूप निष्पक्षता, समानता के अवसर के मूल्यों से चुनाव आयोग क्या किनारा कर रहा है? एडीआर और सिविल सोसाइटी के अन्य नागरिक समूहों द्वारा बड़े सवाल केंद्रीय चुनाव आयोग की भूमिका पर उठाये गए हैं।