आज़ादी से पहले भारत में राजतांत्रिक व्यवस्था थी। राजा थे और प्रजा थी। राजतंत्र बुरा होता है, गणतांत्रिक व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ। यही सोचकर हमने आज़ाद भारत का संविधान बनाया। 26 जनवरी, 1950 को भारत, संसदीय गणतंत्र हो गया। आज हम भारत को दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र बताते हुए गौरव का अनुभव करते हैं। प्रश्न है कि यदि गणतंत्र, सचमुच गण यानी लोगों की, लोगों के द्वारा, लोगों के हित में संचालित व्यवस्था है, तो फिर दुनिया के तमाम गणतांत्रिक देशों के नागरिकों को अपने साझा हक़ूक व हितों के लिए आंदोलन क्यों करने पड़ रहे हैं?
सात दशक में भारत में गणतंत्र कितना सफल हो पाया है?
- पाठकों के विचार
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- अरुण तिवारी
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- 23 Jan, 2021

अरुण तिवारी
देश 2025 में 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है तो सवाल उठता है कि क्या एक गणतंत्र के रूप में सफल हो पाए? इसे राजंतत्र से अलग कैसे समझें?
नागरिकों को उनके मौलिक कर्तव्य क्यों याद दिलाने पड़ रहे हैं? नागरिक कौन होगा, कौन नहीं, यह तय करना, स्वयं नागरिकों के हाथों में क्यों नहीं है? दूसरी तरफ, यदि राजतंत्र इतना ही बुरा था, तो सुशासन के नाम पर हम आज भी रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने का सपना क्यों लेते हैं?
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