देश ने स्वतंत्रता के बाद सैद्धांतिक रूप से आत्मनिर्भरता, समृद्धि के जो भी बदलाव देखे हैं वह डॉ. भीमराव आम्बेडकर के संविधान को मूलरूप से अपनाने के बाद अनुभव किए हैं। उन्होंने देश को एक ऐसा बेहतरीन लिखित दस्तावेज दिया जो हर व्यक्ति को स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अलावा वह सभी हक़ और अधिकार देता है जिसमें समानता और बंधुत्व के साथ समाजवादी विचार भी है, जिसकी वजह से आज हम गर्व से सर ऊँचा कर ख़ुद को नागरिक कहते हैं।
देश आम्बेडकर के सपनों पर खरा उतर पाया?
- पाठकों के विचार
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- 26 Nov, 2020

सविता आनंद
भारतीय संविधान को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दलित चिंतक बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर का जन्म आज के ही दिन यानी 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उनके बनाए संविधान पर भारत आज कितना अडिग है और उनके सपनों का भारत तैयार करने में हमें कितनी कामयाबी मिली है, डालते हैं एक नज़र।
परंतु यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि हमने आम्बेडकर को सिर्फ़ दलितों-पिछड़ों-शोषितों का मसीहा बताकर उनके क़द को छोटा करने का काम किया है। वह एक ऐसे इंसान थे जो ख़ुद में एक संग्रह थे इतिहास के, वाणिज्य के, क़ानून के, समाजशास्त्र के जिन्होंने उस दौर में हर एक समस्या का समाधान दिया जिससे देश सदियों से जूझ रहा था, जो देश को विकासशील देशों की श्रेणी में रखने के लिए ज़रूरी थे।
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सविता आनंद
सविता आनंद समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।