बीजेपी और आरएसएस के लिए यूपी चुनाव ज़्यादा बड़ा मसला है। बीजेपी और संघ यूपी को किसी भी क़ीमत पर नहीं गँवाना चाहते। दक्षिणपंथी राजनीति के लिए यूपी का चुनाव कई लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा है।
दलितों पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं, मगर दलित राजनीति ठंडी पड़ी हुई है और दलित नेता कहीं नज़र नहीं आ रहे। क्या है इसकी वज़ह है? क्या दलित राजनीति का दौर ख़त्म हो गया है? सत्यहिंदी वेबिनार में इस बार भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद से बेबाक बातचीत
सेक्युलर राजनीति ने दलित राजनीति करने वाले नेताओं का बुरा हाल कर दिया है। इस कदर कि उनकी पहचान ही ख़त्म होती जा रही है और दलित नेताओं को जनप्रतिनिधि के तौर पर उनके दलित समाज से ही मान्यता मिलती कम होती जा रही है।
दलितों के इंसानी हुकूक का सबसे बड़ा दस्तावेज़ भारत का संविधान है। उसके साथ हो रही छेड़छाड़ की कोशिशों से हमारे गाँव के दलित चौकन्ने हैं। उनको जाति के शिकंजे में लपेटना नामुमकिन है।