इस्लाम में रमज़ान का महीना बहुत पवित्र माना जाता है। लेकिन दूसरी तरफ अफगानिस्तान की मस्जिदों में बम धमाके हो रहे हैं, जिनमें अनगिनत नमाज़ी मारे गए हैं। आखिर वो कौन मुसलमान हैं जो ऐसे कारनामों को अंजाम दे रहे हैं। क्या उन्हें मुसलमान कहा जाना चाहिए।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान क्या देश को दशकों पीछे धकेल रहा है? आख़िर वह ऐसे दकियानूसी विचार क्यों थोप रहा है जो क्रूर, महिला विरोधी, मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ है?
परन्तु कल तक गाँधी की हत्या का शोक मनाने वाले आज हत्यारे गोडसे का गुणगान करने वालों की पंक्ति में जा खड़े होंगे, यह संभवतः हमारे ही देश की अवसरवादी व विचारविहीन राजनीति का दुर्भाग्य है।
विकास के दावे करती रही बीजेपी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 'अब्बा जान, जिन्ना, जालीदार टोपी, पाकिस्तान’ जैसे शब्दों का प्रयोग क्यों कर रही है? यदि इसने काम किया है तो धर्म का इस्तेमाल क्यों?
कट्टरपंथी विचारधारा वाले शस्त्र धारण करने और मुसलमानों का नरसंहार करने को क्यों उकसा रहे हैं? और ऐसे उकसावे पर अल्पसंख्यक समुदाय के लिए क्या बेहतर होगा?
दुनिया भर के मुल्क़ों की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाए जाने की ज़रूरत है। इससे हालात बदलेंगे। प्रियंका गांधी का एलान इसी दिशा में एक बड़ा क़दम है।
भारत की कश्मीर घाटी में आम लोगों से लेकर अफ़ग़ानिस्तान के कुंदूज़ की एक शिया मसजिद में आत्मघाती हमले में नमाजियों को निशाना बनाने के पीछे मक़सद क्या है? अमन पसंद लोगों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
कांग्रेस संगठन को लेकर पिछले साल असंतुष्टों के समूह जी-23 के नेताओं ने जो सवाल उठाए थे उसकी गूंज अब कपिल सिब्बल के एक बयान से फिर से सुनाई देने लगी है। आख़िर ऐसा क्यों है? क्या कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर कोई विकल्प है?
भारतीय समाज में जो विघटन पाकिस्तान तीन दशकों में पैदा नहीं कर सका वह काम भारत में ही रहने वाले 'स्वयंभू राष्ट्रवादियों' ने महज़ एक दशक के भीतर ही नफ़रत फैलाकर कर डाला।
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के ज़िले डेरा रहीम यार ख़ान के भोंग शरीफ़ नामक इलाक़े में एक गणेश मंदिर में गत 5 अगस्त को तोड़ फोड़ की गई और मंदिर को क्षति पहुँचाई गई।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले पुलिस ने कथित 'धर्म परिवर्तन रैकेट' का खुलासा किया है। क्या इसके पीछे कुछ भी सच्चाई है और क्या मुसलिम धर्म जबरन धर्मांतरण की इजाज़त देता है?