भारत के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू और संविधान सभा की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्हे यह नहीं मालूम था कि आजादी के 75 सालों के बाद भी भारत के जनमानस द्वारा ऐसा नेता को चुना जाएगा, जो मूलरूप से आधे सच के प्रतिनिधि होंगे। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में, धन्यवाद प्रस्ताव पर भाषण को सुनकर कम से कम यही लगा। भारत की सजग नागरिक होने के नाते यह सच में बहुत विचलित करने वाला है कि देश की बागडोर एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में है जिसे सबसे ज्यादा प्यार ‘हाफ ट्रुथ’ से है।
कितने सच्चे हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
- विमर्श
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- 13 Feb, 2022

भारत के पहले प्रधानमंत्री के बारे में प्रधानमंत्री की हैसियत से संसद के उच्च सदन में जो उन्होंने बोला वो प्रधानमंत्री की गरिमा का समापन था। उन्होंने कहा “कॉंग्रेस के साथियों की प्यास बुझाने के लिए आजकल नेहरू को याद करता रहता हूँ”। गोवा की आजादी के मुद्दे को उठाते हुए नेहरू को ‘अहंकारी’ और ‘अपनी छवि चमकाने वाला’ तक कह डाला।
आश्चर्य यह है कि चाहे महात्मा गाँधी का मामला हो या जवाहरलाल नेहरू का या फिर सुभाषचंद्र बोस और वल्लभभाई पटेल का, आरएसएस और भाजपा के पास क्या एक भी सत्य की लकीर नहीं जिस पर वो चल सकें? क्या एक भी ऐसा सत्य नहीं है जिस पर किन्तु परंतु न हो?