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अजीबोगरीब तालिबानी फरमान से दशकों पीछे जा रहा अफ़ग़ानिस्तान?

अफ़ग़ानिस्तान में सरकारी कर्मचारियों के लिए दाढ़ी रखना अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसा नहीं करने पर उन्हें कार्यालय में घुसने नहीं दिया जाएगा। यह ऐसे ही कई फरमानों में से एक है जो तालिबान कुछ दिन के फासलों पर जारी करता रहा है। दो दिन पहले ही उसने एक और फ़रमान निकाला है कि यदि कोई पुरुष रिश्तेदार साथ नहीं हो तो महिलाएँ हवाई जहाज से कहीं नहीं जा सकेंगी। क़रीब हफ़्ते भर पहले कहा है कि लड़कियों को छठी कक्षा से आगे नहीं पढ़ाया जाएगा

वैसे, तालिबान का यह रूप तभी दिख गया था जब उसने अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से निकलने के पहले ही काबुल पर कब्जा जमा लिया था। तब तालिबानी लड़ाकों ने कार्यालयों से महिलाओं को निकाल दिया था और कहा था कि वे काम नहीं कर सकती हैं। न्यूज़ चैनलों से भी महिलाओं को निकाल दिया गया था। तालिबान ने उसी दौरान यह साफ़ कर दिया था कि वह देश में कट्टर इसलामी क़ानून लागू करेगा। यानी कपड़े पहनने से लेकर, खान-पान, रहन-सहन के तौर-तरीक़े सबकुछ शरिया क़ानून से तय होंगे। तो क्या अफ़ग़ानिस्तान में घड़ी की सुई पीछे की ओर घुम गई है?

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एक रिपोर्ट के अनुसार ताज़ा मामले में तालिबान ने आदेश दिया है कि जिन सरकारी कर्मचारियों ने दाढ़ी नहीं रखी है, उन्‍हें ऑफिस में घुसने से रोक दिया जाए। तालिबान ने सोमवार को इस पर अमल भी शुरू कर दिया है। दाढ़ी नहीं रखने वाले वित्‍त मंत्रालय के कर्मचारियों को ऑफिस में घुसने से रोक दिया गया। हालाँकि, इसलामिक मामलों के मंत्रालय ने कर्मचारियों को रोके जाने की ख़बर का खंडन किया है। मंत्रालय के प्रवक्‍ता सादिक अकीफ ने कहा कि वित्‍त मंत्रालय के अधिकारियों को दिशा निर्देश और सिफारिशों को बताने के लिए उनके कर्मचारियों ने रोका था। खम्‍मा प्रेस ने प्रत्‍यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि तालिबान ने तभी कर्मचारियों को घुसने की अनुमति दी जब उन्‍होंने टोपी पहनी। इस टोपी को पहनने के लिए तालिबान ने निर्देश जारी कर रखा है। 

अकीफ ने कहा है, 'महिलाओं को बिना हिजाब के आने नहीं दिया जाए। सरकार के पुरुष कर्मचारियों को शरिया क़ानून के मुताबिक़ कपड़े पहनकर आने के लिए कहा गया है।' हाल ही में कुछ ऐसे ही और भी अजीबोगरीब फ़ैसले हुए।
तालिबान ने कहा है कि पुरुष और महिलाएँ केवल अलग-अलग दिनों में सार्वजनिक पार्कों में जा सकते हैं और विश्वविद्यालयों में मोबाइल टेलीफोन का उपयोग प्रतिबंधित है। पश्तो और फ़ारसी बीबीसी सेवाएं भी बंद कर दी गई हैं।

जब तालिबान ने पिछले साल काबुल पर कब्जा किया था तब उसने बार-बार कहा था कि उसके नियंत्रण में अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को कामकाज करने या बाहर जाने पर रोक नहीं होगी और न ही लड़कियों के स्कूल बंद किए जाएँगे, लेकिन उनके लड़ाकों ने काबुल में दाखिल होते ही महिलाओं को निशाने पर लेना शुरू कर दिया था।

तब के तालिबान के हालात पर फ़िल्म निर्देशक और अफ़ग़ान फ़िल्म की महानिदेशक सहारा करीमी ने एक ख़त काबुल पर तालिबान के कब्जे से दो दिन पहले 13 अगस्त को सोशल मीडिया पर जारी किया था। उन्होंने लिखा था, 'मैं इसे टूटे दिल के साथ लिख रही हूँ... तालिबान ने हमारे लोगों का नरसंहार किया, कई बच्चों का अपहरण किया। कई लड़कियों को चाइल्ड ब्राइड के रूप में अपने आदमियों को बेच दिया। उन्होंने एक महिला की हत्या उसकी पोशाक के लिए की। उन्होंने हमारे पसंदीदा हास्य कलाकारों में से एक को प्रताड़ित किया और मार डाला, उन्होंने एक ऐतिहासिक कवि को मार डाला। उन्होंने सरकार के कल्चर और मीडिया हेड को मार डाला। उन्होंने सरकार से जुड़े लोगों को मार डाला। उन्होंने कुछ आदमियों को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया। उन्होंने लाखों परिवारों को विस्थापित कर दिया।'

taliban edict islamic sharia law in afghanistan - Satya Hindi

तालिबान ने मंत्रिमंडल में एक भी महिला को शामिल तो नहीं ही किया है, उसने साफ़ कह दिया था कि औरतें मंत्री नहीं बन सकतीं, वे बस बच्चे पैदा करें। तालिबान के प्रवक्ता सैयद ज़करुल्ला हाशमी ने सितंबर महीने में काबुल स्थित समाचार टेलीविज़न चैनल 'टोलो न्यूज़' से कहा, 'एक महिला मंत्री नहीं बन सकती, यह वैसा ही मामला है कि आप उसके गले पर कुछ रख दें और वह उसे लेकर चल नहीं सके। मंत्रिमंडल में किसी महिला का होना ज़रूरी नहीं है, महिलाएँ बच्चे पैदा करें।'

इसके अलावा तालिबान ने कई नृशंस हत्याएँ कीं। एक गर्भवती महिला की हत्या का भी ऐसा ही मामला था। उसने एक कॉमेडियन की हत्या कर दी थी। पत्रकारों पर कोड़े मारे जाने की ख़बरें भी आईं। इन पत्रकारों का 'ज़ुर्म' यह था कि उन्होंने काबुल में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन की खबर की और उसका वीडियो भी जारी कर दिया। कुछ लोगों को मार कर तालिबान ने शवों को क्रेन से लटका दिया था। 

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एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान के एक वरिष्ठ अधिकारी और अफगानों के अनुसार, अफगानिस्तान को पीछे ले जाने वाला ताज़ा फ़ैसला दक्षिणी शहर कंधार में पिछले सप्ताह तीन दिवसीय बैठक में लिया गया। वे कहते हैं कि यह आदेश तालिबान के कट्टर नेता, हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा की मांगों से उपजा है। वह साफ़ तौर पर देश को 1990 के दशक में वापस ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। तब तालिबान ने महिलाओं के शिक्षा और सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंध लगा दिया था और संगीत, टेलीविजन और कई खेल को ग़ैरकानूनी घोषित कर दिया था।

हालाँकि, रिपोर्ट है कि युवा तालिबानी लड़ाके उस हद तक दकियानूसी विचारों से सहमत नहीं हैं, लेकिन वे आवाज़ भी नहीं उठाते हैं। तो सवाल है कि बेरोक-टोक क्या अफगानिस्तान पीछे की ओर ही धकेला जाता रहेगा?

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क़मर वहीद नक़वी
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