गुजरात सरकार के एलान के बाद समान नागरिक संहिता एक बार फिर बहस के केंद्र में है। अलग-अलग धर्मों, जातियों-उपजातियों में बँटे भारतीय समाज के हर वर्ग की अलग-अलग वैवाहिक रीतियाँ और पद्धतियाँ हैं। इसी तरह उत्तराधिकार और जायदाद के बँटवारे की भी अलग-अलग पद्धतियाँ हैं। व्यक्तिगत क़ानून का महत्व बहुत पहले से चला आ रहा है।
समान नागरिक संहिता का सबसे ज़्यादा विरोध सवर्ण हिन्दू ही करेंगे?
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- 29 Oct, 2022


समान नागरिक संहिता के नाम पर हिन्दुओं को गोलबंद करने की कोशिश का क्या असर होगा, पता नहीं। पर समझा जाता है कि इसका सबसे मुखर विरोध सवर्ण हिन्दू समाज ही करेंगे।
विक्रमादित्य के शासन के समय हिंदुओं को एक करने के लिए व विवाह और संपत्ति पर अधिकार कै लिए मिताक्षरा लिखी गई। उसमें यह प्रयास किया गया कि सभी हिंदू एक पद्धति से अपने वैवाहिक संस्कारों का संचालन करें। यह सफल नहीं हुआ और फिर दायभाग स्कूल को मान्यता मिली जो ख़ास कर बंगाल में लागू है।























