उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 लोगों को निकालने के लिए जब अंतरराष्ट्रीय टनलिंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स को बुलाया गया तो उन्होंने अखबारों और टीवी चैनलों पर यह बताकर सुर्खियां बटोरीं कि क्रिसमस तक सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा। लेकिन अंत में भारत की वही देसी तकनीक काम आई जो यहां सदियों से गड्ढा बनाने, नींव खोदने, भूमिगत रास्ता बनाने के लिए वही मजदूर तबका करता रहा है। हालांकि इसे रैट होल माइनिंग कहा जाता है, जिसका मतलब है कि चूहे की तरह खुदाई करना और बिल बनाना लेकिन यहां इसका अर्थ है मैन्युअल खुदाई। यानी हाथ से खुदाई। ऑपरेशन 41 में इन्हीं रैट होल मइनर्स की सबसे बड़ी भूमिका है। और इसमें भी वो नाम सबसे प्रमुख है, जो शख्स सबसे पहले 41 मजदूरों तक सबसे पहले पहुंचा। मुन्ना कुरैशी का नाम मंगलवार को ऑपरेशन के पूरा होने के समय तमाम वीआईपी लोगों के नामों में खो गया था लेकिन मुन्ना कुरैशी इस कथा के सबसे बड़े नायक बन गए हैं।
उत्तरकाशी सुरंगः ऑपरेशन 41 के नायक मुन्ना कुरैशी कौन हैं?
- देश
- |
- 29 Mar, 2025
उत्तरकाशी सुरंग बचाव अभियान में कामयाबी को मुमकिन बनाने वाले रैट होल माइनर्स की तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं। रैट होल माइनर्स यानी हाथ से खुदाई कर 41 मजदूरों को निकालकर लाने वालों में इन्हीं की सबसे बड़ी भूमिका है। और इस भूमिका में वो पहला रैट होल माइनर कौन है जिसने सबसे पहले अंदर जाने की हिम्मत दिखाई...उनका नाम है मुन्ना कुरेशी। सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों को निकालने में वैसे तो असंख्य लोगों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भूमिका है, लेकिन कुछ भूमिकाओं की कहानी बताई जानी चाहिएः
