क्या किसी विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठक भर से क़ानून व्यवस्था बिगड़ने का डर हो सकता है? वह भी तब जब वह कोई धार्मिक सम्मेलन न हो तो भी? या किस सम्मेलन या गोष्ठी में क्या चर्चा हो यह पुलिस को बताकर ही कार्यक्रम किया जा सकता है? ये सवाल इसलिए कि पुणे में रविवार को होने वाले एक नास्तिक सम्मेलन को रद्द करना पड़ा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस कार्यक्रम के आयोजकों ने कहा है कि शहर की पुलिस को आशंका थी कि 'राम नवमी त्योहार के दिन इस तरह के आयोजन से क़ानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती है।'
पुणे: नास्तिक सम्मेलन से क़ानून व्यवस्था बिगड़ने का डर क्यों? कार्यक्रम रद्द!
- महाराष्ट्र
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- 10 Apr, 2022
वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता, आधुनिकता, नास्तिकता जैसे मुद्दों पर गोष्ठी या सम्मेलन से क्या क़ानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर हो सकता है? यदि ऐसा हो तो क्या यह चिंतित होने का कारण नहीं है?

प्रतीकात्मक तसवीर।
सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अजय कामत ने ट्वीट किया है, 'पुणे में एक नास्तिक सम्मेलन को 'क़ानून और व्यवस्था की समस्या' के डर से पुलिस ने रद्द कर दिया है क्योंकि यह राम नवमी का दिन है। हमारे देश और इसकी क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों के बारे में कुछ कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।'