न्यूज़ चैनलों द्वारा टीआरपी हासिल करने के लिए घटिया हथकंडे आज़माने और कंटेंट के स्तर को गिराने के संबंध में अक्सर यह दलील दी जाती है कि बेचारे चैनल भी क्या करें, उन्हें भी तो खाना-कमाना है, गुज़ारा करना है। यानी वे यह काम मजबूरी में कर रहे हैं, वर्ना ऐसा क़तई नहीं करना चाहते। निश्चय ही यह एक बहुत ही वाहियात क़िस्म का तर्क है। उनसे पूछा जा सकता है कि आप चैनल चलाना ही क्यों चाहते हैं, क्या किसी डॉक्टर ने आपसे ऐसा कहा था या दर्शक आपके घर पहुँच गए थे कि आप चैनल लॉन्च कीजिए?