संतूर के पर्याय शिवकुमार शर्मा का जाना भारतीय संगीत के एक चमकदार नक्षत्र का अनंत में विलीन होने जैसा है। संतूर को उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पहाड़ियों से उठाकर अंतरराष्ट्रीय संगीत समागमों में प्रतिष्ठा दिलाई। भारत में जिस समय हार्मोनियम आई तब कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि पश्चिमी वाद्ययंत्र पर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सुर निकाले जा सकते हैं लेकिन ग्वालियर के गनपतराव भैयासाहब ने पिछली शताब्दी की शुरुआत में यह करिश्मा कर दिखाया था। ठीक उसी तरह पंडित शिवकुमार शर्मा ने संतूर पर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की धुनों को निकालकर संगीत मर्मज्ञों को चमत्कृत किया। अन्यथा कोई मिलने को तैयार नहीं था कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की राग रागनियां इस पहाड़ी वाद्ययंत्र में अपनी धुन बिखेर सकती हैं।