संतूर के पर्याय शिवकुमार शर्मा का जाना भारतीय संगीत के एक चमकदार नक्षत्र का अनंत में विलीन होने जैसा है। संतूर को उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पहाड़ियों से उठाकर अंतरराष्ट्रीय संगीत समागमों में प्रतिष्ठा दिलाई। भारत में जिस समय हार्मोनियम आई तब कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि पश्चिमी वाद्ययंत्र पर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सुर निकाले जा सकते हैं लेकिन ग्वालियर के गनपतराव भैयासाहब ने पिछली शताब्दी की शुरुआत में यह करिश्मा कर दिखाया था। ठीक उसी तरह पंडित शिवकुमार शर्मा ने संतूर पर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की धुनों को निकालकर संगीत मर्मज्ञों को चमत्कृत किया। अन्यथा कोई मिलने को तैयार नहीं था कि हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की राग रागनियां इस पहाड़ी वाद्ययंत्र में अपनी धुन बिखेर सकती हैं।
पर्वतमालाओं में गूंजता रहेगा पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर
- श्रद्धांजलि
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- 11 May, 2022

प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा का मंगलवार को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। जानिए, संतूर वादन में उनका क्या है योगदान।
पंडित शिवकुमार शर्मा सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी रहे। उनके घुंघराले बालों ने सबके चेहरे पर मुस्कान बिखेरी। जिंदगी के तमाम उतार चढ़ावों से रूबरू हुये पंडित शिवकुमार शर्मा के पिता पंडित उमादत्त शर्मा जम्मू रेडियो स्टेशन पर संगीत पर्यवेक्षक थे। इस तरह संगीत का वातावरण घर में बचपन से मिला। थोड़े से बड़े हुए तो पंडित शिवकुमार शर्मा को तबला सिखाया गया और इसके बाद उन्होंने संतूर सीखने में मन लगाया। पंडित शिवकुमार शर्मा की मातृभाषा डोगरी थी।