चुने हुए बांगला गीतों के अनुवाद पर आधारित रचना 'गीतांजलि' को नोबल पुरस्कार मिलने पर जब स्वदेश के लोगों ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मुक्तकंठ से प्रशंसा करना आरम्भ किया तब गुरुदेव ने उदास लहजे में यही कहा कि यह गीत तो मैंने पहले ही आपके लिए आपकी भाषा में लिख दिये थे, तब आपने इन पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा।