अपेक्षा के अनुरूप सरकार ने 31 दिसम्बर को रिटायर हो रहे भारत के थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को भारत के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ यानी प्रधान सेनापति के पद पर नियुक्त करने का एलान एक दिन पहले कर दिया। तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और युद्ध की साझा रणनीति तैयार करने और भविष्य के युद्धों की चुनौतियों से निपटने के लिए इस पद के सृजन की ज़रूरत पिछले दो दशकों से महसूस की जा रही थी। 1999 के करगिल युद्ध के दौरान तीनों सेनाओं में तालमेल की जो कमियाँ महसूस की गईं उसी से निष्कर्ष निकाल कर करगिल युद्ध के नतीजों की समीक्षा के लिए के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में गठित समिति ने सिफ़ारिश की कि तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल के लिए तीनों सेनाओं का साझा प्रमुख होना चाहिए।
कहीं दिखावट भर के लिए न रह जाए चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ का पद!
- विचार
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- 31 Dec, 2019

चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ का पद भविष्य के युद्धों की चुनौतियों के अनुरूप बनाया गया है लेकिन अभी भी सामरिक हलकों में यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह पद अपने घोषित लक्ष्यों को हासिल कर पाएगा?
भविष्य के युद्ध का स्वरूप पिछले युद्धों की तुलना में काफ़ी बदला हुआ होगा। वह ज़माना अब नहीं रहा जब थलसेना के मुख्य युद्धक टैंक दुश्मन के इलाक़े में जब जाते थे तब उन्हें किसी तरह के हवाई समर्थन की ज़रूरत नहीं होती थी। लेकिन अब थलसेना के लड़ाकू टैंकों को जब आसमान से लड़ाकू हेलिकॉप्टरों और लड़ाकू व टोही विमानों का हवाई सुरक्षा आवरण नहीं मिलेगा तो थलसेना के युद्धक टैंक दुश्मन द्वारा मटियामेट कर दिए जाएँगे।