जब किसी संगठित और संकल्पित आंदोलित समूह का मक़सद साफ हो, उसके नेतृत्व में चारित्रिक बल हो और आंदोलनकारियों में धीरज हो तो उनके सामने सत्ता को अपने कदम पीछे खींचने ही पड़ते हैं, ख़ास कर ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में, जिनमें वोटों के खोने का डर किसी भी सत्तासीन राजनीतिक नेतृत्व के मन में सिहरन पैदा कर देता है।