पिछली कड़ी: हिन्दू मुसलिम- पार्ट 3: क्या वेदों में हजरत मुहम्मद के आने की भविष्यवाणी है?

हिन्दू मुसलिम सद्भाव का कैसा इतिहास रहा है, इस पर पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि क्या वेदों में हजरत मुहम्मद के आने की भविष्यवाणी है? इस कड़ी में पढ़िए कि क्या क़ुरआन में सनातन धर्म का ज़िक्र है?
मैंने इससे पहले वाले अंक में आप से वादा किया था कि आपको इस भाग में उस नाम से परिचित करवाऊँगा जो ऐसा प्रतीत होता है कि सनातन धर्मियों के लिए क़ुरआन में इस्तेमाल हुआ है। मुझे लगता है कि इस रहस्य पर से पर्दा इसलिए भी उठाया जाना बहुत ज़रूरी है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दीवार उठाने के लिए काफ़िर शब्द का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता रहा है। जबकि काफ़िर का अर्थ होता है इंकार करने वाला। (सनातन धर्म ने भी इसी आशय को व्यक्त करने वाला नास्तिक शब्द हज़ारों साल पहले दुनिया को दिया था।)
यह शब्द एकेश्वरवाद पर विश्वास रखने वालों के लिए प्रयोग नहीं हो सकता क्योंकि 1400 वर्ष पूर्व जिन लोगों ने पैगंबर हज़रत मोहम्मद के एकेश्वरवाद के संदेश को क़ुबूल करने से इंकार किया उनको क़ुरआन में काफ़िर कहा गया और बहु वचन में उनको कुफ़्फ़ार ए क़ुरैश कहा गया। यह शब्द उस विशेष समूह के लिए प्रयोग किया गया जो मक्का और आसपास के इलाक़ों में आबाद था। इस समूह के अलावा क़ुरआन में तीन अन्य धर्मों के नाम आये हैं। एक धर्म का नाम नसारा (ईसाई), दूसरे का यहूदी और तीसरे का साबइन बताया गया है। दुख की बात है कि मुसलिम उलेमा ने काफ़ी लम्बे समय तक यह जानने की कोशिश नहीं की कि साबइन किस समूह के लिए प्रयोग हुआ है।