आरसीईपी में शामिल न होने का फ़ैसला मोदी सरकार का अब तक का पहला (और इकलौता) फ़ैसला है जो चंद धन्नासेठों के ही नहीं, भारत की आम जनता, ख़ासतौर पर ग़रीबों और भारत के अपने दीर्घकालिक हितों में है।
आरसीईपी पर कड़ा फ़ैसला लेने से क्यों 'डर' गए प्रधानमंत्री मोदी?
- विचार
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- 6 Nov, 2019

ख़ुद मोदी बैंकॉक में क्या कर रहे थे? राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष दोनों 'समझौतों पर हस्ताक्षर न करने के लिए' शिखर वार्ताओं में शामिल नहीं होते!
लेकिन इसका श्रेय लेने की सरकार की हड़बड़ी बेढंगी है।
याद करना चाहिए कि अभी अक्टूबर तक सरकार और ख़ासतौर पर इसके व्यापार मंत्री पीयूष गोयल आरसीईपी में शामिल न होने पर भारत के वैश्विक रूप से अलग-थलग पड़ जाने का ख़तरा जता रहे थे, बैंकॉक में तैयारी बैठकों में शामिल हो रहे थे।
ख़ुद मोदी बैंकॉक में क्या कर रहे थे? राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष दोनों 'समझौतों पर हस्ताक्षर न करने के लिए' शिखर वार्ताओं में शामिल नहीं होते! कूटनीति पर उड़ती नज़र रखने वाले भी जानते हैं कि प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों का शिखर वार्ताओं में शामिल होना ऐसे अचानक नहीं होता जैसे शाम को बाज़ार से सब्जी लेकर लौट रहे हों तो सोचा ख़ान साहब या मिस्टर प्रसाद से मिल भी लें!