विख्यात चेक कवि मिरास्लाव होलुब की पंक्तियाँ हैं-
हँसो मत, उन्हें एतराज़ है...
- विचार
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- 15 May, 2019

व्यक्तिगत तौर पर मुझे तीस साल से ज़्यादा पत्रकारिता में हो गए और मेरा काम ही मुख्य रूप से व्यंग्य करने या असहमति व्यक्त करने का रहा है। पिछले कुछ वर्षों से यह महसूस होता है कि हम पर एक अदृश्य दबाव है कि ऐसी कोई बात न हो जाए जिसका लोग जानबूझकर ग़लत अर्थ निकाल लें या कोई आरोप लगा दें।
विदूषक क्या करते हैंजब कोई नहीं,कोई भी नहीं हँसता, माँ।
बहुत सारे राजनेताओं बल्कि किसी भी क़िस्म के सत्ताधारियों का स्वप्न एक ऐसी दुनिया है जहाँ कोई, कोई भी न हँसे। कम से कम ऐसी दुनिया जहाँ उन पर कोई न हँसे, वे अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ हँसी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की रियायत देने को तैयार रहते हैं। इसीलिए जब पश्चिम बंगाल में बीजेपी की एक युवा नेता को सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एक फ़ोटोशॉप से हेरफेर की गई तसवीर को शेयर करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया तो वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इसके ख़िलाफ़ एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लोकतंत्र में व्यंग्य के महत्व को रेखांकित किया। वित्तमंत्री ने ऐसा ट्वीट तब नहीं किया जब प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ या किसी बीजेपी के मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने पर लोगों को गिरफ़्तार किया गया। इसी तरह ममता बनर्जी ने अक्सर बीजेपी के नेताओं की तानाशाही प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है लेकिन उनके अपने राज्य में उनका विरोध करना या मज़ाक़ उड़ाना ख़तरनाक साबित हुआ है।
जब हम युवा थे और सामाजिक राजनैतिक आंदोलनों से जुड़े थे तो मध्यवर्ग की प्रवृत्तियों का मज़ाक़ उड़ाते हुए एक वाक्य बोलते थे - देश में भगत सिंह ज़रूर पैदा होना चाहिए लेकिन पड़ोसी के घर में, अपने बच्चे को तो सुरक्षित मध्यवर्गीय जीवन जीना चाहिए।