पंद्रह अगस्त के बाद से भारत भर में लगातार अफ़ग़ानिस्तान ख़बरों में छाया हुआ है। बात भी बड़ी है। वो तालिबान दोबारा सत्ता पर काबिज हो गया है जिसे ख़त्म करने के लिए अमेरिका ने दुनिया भर की फौजों के साथ हमला किया था। और पूरे बीस साल की कश्मकश के बाद अमेरिका भाग गया और देश फिर तालिबान के हाथ पहुँच गया। भारत के लिए भी फिक्र की बात है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से आतंकवाद को खाद पानी मिलता रहा है और आगे भी मिलने का डर है।

श्रीलंका गहरी मुसीबत में है और किसी भी अच्छे पड़ोसी की तरह भारत को इस वक़्त उसकी मदद करनी ही चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिये कि अगर भारत की तरफ़ से हीला हवाला हुई तो चीन मौक़े का फ़ायदा उठाने के लिए तैयार बैठा है। और साथ ही यह भी ध्यान रहे कि जल्दी ही अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से भी इसी तरह के खाद्य संकट की ख़बरें आ सकती हैं।
लेकिन इसी बीच भारत के पड़ोस में एक टाइम बम फटा है जिस पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो। यह टाइम बम है श्रीलंका में फ़ूड इमरजेंसी यानी खाद्य आपातस्थिति का ऐलान। श्रीलंका सरकार ने खाने पीने के सामान की जमाखोरी और मुनाफाखोरी के ख़िलाफ़ कड़े क़दमों का ऐलान किया है। जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ़ खाने का संकट नहीं है बल्कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी मुसीबत का संकेत है और दरअसल यह आर्थिक आपातकाल का ऐलान है।
सच कहें तो यह कोरोना की चेतावनी को हल्के में ले रहे लोगों के लिए एक बड़ी ख़तरे की घंटी आ गई है। कोरोना काल में श्रीलंका का पर्यटन उद्योग क़रीब क़रीब ठप हो गया, और वो जिन चीजों के निर्यात पर निर्भर था उसमें भी बहुत गिरावट आई।