अभी कुछ दिनों पहले जिस सुप्रीम कोर्ट ने ‘हिंसा के डर से’ सबरीमला के बारे में प्रतिकूल आदेश देने से परहेज़ किया था, उसी सुप्रीम कोर्ट ने कल ‘हिंसा को ही आधार’ बनाकर जामिया विश्वविद्यालय में हुई पुलिसिया कार्रवाई पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि जब तक उपद्रव नहीं रुकेगा, वह सुनवाई नहीं करेगा। दोनों बेंचों की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ही कर रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कैसे मान लिया कि हिंसा छात्रों ने ही की थी?
- विचार
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- 17 Dec, 2019

सुप्रीम कोर्ट ने जामिया मामले में टिप्पणी की है कि जब तक उपद्रव नहीं रुकेगा, वह सुनवाई नहीं करेगा। सबरीमला और आरटीआई के मामले में भी कोर्ट की कुछ ऐसी ही टिप्पणियाँ आईं। इन तीनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के इन बयानों से जो संदेश निकल रहा है, वह चिंताजनक है। लेकिन कहा जाता है न कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, ऐसा लगना भी चाहिए कि न्याय हुआ है। लेकिन क्या ऐसा हो रहा है?
यह विचित्र नहीं है क्या? सबरीमला का मुद्दा - वे हिंसा कर सकते हैं, इसलिए हम उनके ख़िलाफ़ आदेश नहीं देंगे। जामिया का मुद्दा - वे हिंसा कर रहे हैं, इसलिए हम उनका पक्ष नहीं सुनेंगे।
आश्चर्य की बात यह है कि कोर्ट यह बात तब कह रहा है जबकि अभी यह तय भी नहीं हुआ है कि जामिया मामले में हिंसा किसने की। ताज़ा ख़बरों के अनुसार पुलिस ने जिन 10 लोगों को गिरफ़्तार किया है, वे जामिया के छात्र नहीं हैं, स्थानीय लोग हैं। वकीलों की याचिका भी इसी मुद्दे पर थी कि पुलिस ने जामिया विश्वविद्यालय में घुसकर छात्रों को मारा-पीटा और तोड़फोड़ की। उनका मुद्दा यही था कि पुलिस ने निर्दोष छात्रों के ख़िलाफ़ अनुचित कार्रवाई की।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश