इतवार की अलसाई सुबह और दिन के अख़बार। देर तक अख़बार पढ़ना आज भी मुझे अच्छा लगता है। ऑनलाइन से ज़्यादा काग़ज़ के पन्ने मुझे अधिक आकर्षित करते हैं। संडे को वैसे मैं तवलीन सिंह का कॉलम सरसरी नज़र से ही देखता हूँ। पर इस बार उसकी हेडलाइन देख कर पूरा पढ़ गया। तवलीन सिंह अपने समय की तेज-तर्रार रिपोर्टर थीं। आज वरिष्ठ पत्रकार हैं। इंडियन एक्सप्रेस में उन्होंने लिखा, ‘हाउडी मोदी पर टीवी चैनल की कवरेज को देखकर मैं थोड़ा शर्मसार हुई।’ वह लिखती हैं, ‘जब मैंने यह जानने की कोशिश की कि आख़िर हाउडी की रिपोर्टिंग में इतना शर्मनाक हिस्टीरिया क्यों पैदा किया गया तो मुझे पता चला कि यह एक तरह की कोशिश थी, यह बताने की कि भारत के नेता को पाकिस्तान के नेता की तुलना में कितना अधिक सम्मान मिला।’

आज कश्मीर पर चर्चा देश से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हो रही है। हम भले ही यह मुग़ालता पाल लें कि पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा ने भारत का क़द बढ़ा दिया है और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है लेकिन हक़ीक़त इसके उलट है। यह तो नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री का क़द कितना बढ़ा है पर इतना ज़रूर पता है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की जो एक लोकतांत्रिक मुल्क की छवि थी, उस पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं।
तवलीन सिंह को मोदी समर्थक पत्रकारों में ग़िना जाता है। लेकिन वह उन टीवी पत्रकारों में नहीं हैं जो दिन-रात मोदी पूजा में लगे रहते हैं। उनकी पीएम मोदी और उनकी सरकार को लेकर एक सोच है। और उन्हें लगता है कि मोदी देश के लिये कुछ बेहतर कर रहे हैं। इस वजह से उनके साथी पत्रकार उनकी आलोचना भी करते रहते हैं, लेकिन वह बदलती नहीं हैं। पर इसका यह अर्थ भी नहीं है कि वह पूरी तरह से मोदी के रंग में रंगी रहती हैं।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।