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क्या कांग्रेस की डूबती नैया को किनारे लगा पाएंगे किशोर?

2014 और 2019 में लगातार दो लोकसभा चुनावों में हार । उसके बाद कई राज्यों में हार। अब लगता है कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कुछ अलग करना पड़ेगा। वो चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर दांव लगाने पर विचार कर रही है। प्रशांत किशोर ने शनिवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और वरिष्ठ नेताओं के सामने 2024 में जीत की रणनीति पर एक प्रजेंटेशन दिया है। अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का समूह इस पर विचार करके सोनिया गांधी को अपनी राय देगा कि प्रशांत किशोर की सेवाएं ली जाएं या नहीं।

अभी यह साफ़ नहीं है कि प्रशांत किशोर बाक़ायदा कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी पदाधिकारी के रूप में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी निभाएंगे या सिर्फ़ चुनावी रणनीतिकार के रूप में कांग्रेस के साथ काम करेंगे। इस पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी में ज्यादातर नेता प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल करने के बजाय बाहर से ही उसकी सेवा ले जाने देने के हक़ में हैं। 

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प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा से क़रीब साल भर से चल रही हैं। लेकिन इस पर कोई ठोस फैसला नहीं हो पाया। पार्टी में शामिल होने पर उनको दिये जाने वाले पद और भूमिका को लेकर वरिष्ठ नेताओं के बीच आम राय नहीं बन पा रही। सूत्रों मुताबिक़ प्रशांत किशोर पार्टी में अहमद पटेल की तरह बड़ी भूमिका चाहते हैं। इसके लिए पार्टी का नेतृत्व तैयार नहीं है।

कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक क़रीब चार घंटे चली इस बैठक में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को दिए अपने प्रज़ेंटेशन में कांग्रेस को सलाह दी है कि वो 2024 के लोससभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाय सिर्फ 370 सीटों पर ही फोकस करे। बाकी सीटें अपने अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़े। इसी रणनीति से बीजेपी को हराया जा सकता है।

Prashant Kishor and Congress 2024 election plan - Satya Hindi
सूत्रों के मुताबिक प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है। जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने की राय दी है। बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर की इस राय पर राहुल गांधी समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने सहमति जताई है।इस पर आख़िरी फ़ैसला कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का समूह करेगा। सोनिया गांधी जल्दी ही इसका गठन करेंगी। 
चर्चा यह भी है कि प्रशांत किशोर के साथ हुई कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक इस साल के आखिर में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर हुई है।कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पहले कांग्रेस को यह तय करना है कि 2024 में लोकसभा का चुनाव जीतने के प्रशांत किशोर की सेवाएं ली जाएंगी या नहीं। उसी के बाद यह तय होगा कि लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी प्रशांत किशोर ही पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाएंगे या फिर इन राज्यों में पार्टी अपने हिसाब से विधानसभा चुनाव लड़ेगी। 

बता दें कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए रणनीति बनाने की पेशकश की थी। 

2024 में कांग्रेस के सामने है बड़ी चुनौती

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बीजेपी को हराने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस मज़बूत गठबंधन के सहारे ही बीजेपी को मात दे सकती है। 2024 में केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस का दावा तभी मज़बूत होगा जब वो अपने दम पर कम से कम 150 सीटें जीत कर लाए।

ऐसा तभी संभव है जब कांग्रेस अपने वोट में 10% का इजाफा करें। 2004 में 28.3% वोट हासिल करने पर ही कांग्रेस 143 सीटें जीत पाई थी। इसी स्थिति में ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव और एमके स्टालिन जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप केंद्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को समर्थन दे सकते हैं। 

Prashant Kishor and Congress 2024 election plan - Satya Hindi

प्रशांत किशोर लगातार इस बात पर जोर द रहे हैं कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी एकता करे और इस एकता के केंद्र में कांग्रेस रहे है । कांग्रेस ख़ुद को मज़बूत करके की केंद्र की सत्ता के लिए दावेदारी पेश कर सकती है। मज़बूत कांग्रेस के साथ ही क्षेत्रीय दल आ सकते हैं। क्षेत्रीय दलों को अपने पीछे लाने के लिए कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले छह राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ़ बेहतर प्रदर्शन करना होगा। 

इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। जबकि अगले साल पहले कर्नाटक और फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। कर्नाटक को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुक़ाबला है।

राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को जी तोड़ मेहनत करनी होगी बल्कि ठोस रणनीति भी बनानी होगी।
अगर कांग्रेस गुजरात, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश में बीजोपी को हरी दे और राजस्थान के साथ छत्तीसगढ़ की अपनी सरकार बचा ले तो वो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में आ सकती है। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा। गुजरात, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रही है। इसके अलाववा राज्यों के मुक़ाबले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने चनौती और भी बड़ी है। इसे समझने के लिए पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजों पर भी नज़र डालनी होगी।

क्या हुआ था 2014 के लोकसभा चुनाव में?

2014 में कांग्रेस कंद्र की सत्ता से बाहर हुई। तब उसे सिर्फ 10 करोड़ 69 लाख वोट मिले थे। थब उसकी सीटें 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे मिली 206 से घटकर सिर्फ 44 रह गई थीं। उसे 162 सीटों का नुकसान हुआ था। जबकि कांग्रेस को सत्ता से हटाकर हटाने वाली बीजेपी को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 166 सीटों का फायदा हुआ। वह 116 से बढ़कर सीधे 282 पर पहुंच गई थी। बीजेपी को 2009 में मिले 18.8% वोटों के मुक़ाबले 31% वोट मिले थे। उसे मिलने वाले कुल वोटों की संख्या 17 करोड़ 16 लाख थी। इस तरह बीजेपी ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया था। तब प्रशांत किशोर बीजेपी के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने नरेंदर मोदी के लिए चायपर चर्चा जैसा बेहद कामयाब अभियान चलाया था।

Prashant Kishor and Congress 2024 election plan - Satya Hindi

क्या हुआ था 2019 के लोकसभा चुनाव में?

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 2014 के मुकाबले 0.18% ज्यादा वोट मिल। उसे कुल 11 करोड़ 94 लाख वोट मिले और सीटें मिली 52।  यानी उसे सिर्फ 8 सीटों का फायदा हुआ। जबकि बीजेपी को 6.36% वोटों के साथ 21 सीटों का फायदा हुआ। बीजेपी ने पहली बार 300 का आंकड़ा पार करते हुए 303 सीटें जीती थी। इस चुनाव में बीजेपी को 37.36% वोटों के साथ 22 करोड़ 90 लाख वोट मिले थे। बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों क साथ कुल 353 सीटें जीती थी और कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सौ का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई थी। पूरा यूपीए महज़ 91 सीटों पर सिमट गया था। अब भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की इसी स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है।

मोदी की जीत में किशोर का कितना योगदान?

देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में कांग्रेस की नैया लगातार डूबती जा रही है। इस डूबती हुई नैया को प्रशांत किशोर किनारे लगा पाएंगे, अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रशांत किशोर के नाम जीत के जो रिकॉर्ड दर्ज है उनमें  2014 के लोकसभा चुनाव के बाद, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव का नाम आता है।

इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उन्होंने रणनीति बनाई है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी लगातार 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने तक भारतीय राजनीति में उनका अपना जलवा कायम हो चुका था। इस इस लिए उनकी जीत में प्रशातं किशोर से ज्यादा उनका अपना योगदान रहा। मोदी क जीत को प्रशातं किशोर की जीत नहीं कहा जा सकता।

विधानसभा चुनावों में किशोर की भूमिका

दावा किया जाता है कि 2015 में बिहार में कुमार से लेकर 2021 तक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत में प्रशांमत किशोर न महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन गहराई से विश्लेषण करने पर य दावा सच्चा नहीं लगता।2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार लगातार 10 साल मुख्यमंत्री रहे थे। 2015 का चुनाव उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़कर राजद के साथ मिलकर लड़ा था। माहौल उनके पक्ष में पहले से बन चुका था। 2020 का विधानसभा चुनाव केजरीवाल ने अपने 5 साल के कामकाज के नाम पर लड़ा था। लिहाजा उनकी जीत को प्रशांत किशोर की रणनीति का नतीजा नहीं कर सकते। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भी लगातार दोसा दो बार चुनाव जीत चुकी थी और तमिलनाडु में एक बार धर्म और एक बार अन्नाद्रमुक की सरकार बनने का परंपरा रही है।

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कांग्रेस में प्रशांत किशोर के सेवाएं लिए जाने के विरोधी नेताओं का कहना है कि प्रशांत किशोर 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कोई करिश्मा नहीं कर पाए थे। उनकी रणनीति के बावजूद कांगेस दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए थी। अभी तक किसी राज्य में ऐसा नहीं हुआ कि प्रशांत किशोर ने सत्ता से बाहर किसी पार्टी को सत्ता में लाकर खड़ा किया हो।वो हमेशा सत्ताधारी पार्टी के लिए ही चुनावी रणनीति बनाकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। कांग्रेस में प्रशांत किशोर को लेकर अभी भी संशय की स्थिति है।

पार्टी उन उन पर और उनकी रणनीति पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रही है। इसकी वजह ये है कि प्रशांत किशोर ये भरोसा दिलाने में कामयाब नहीं हो पा रहे कि वो कांग्रेस की डूबती नैया कौ पार लगा सकते हैं।

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यूसुफ़ अंसारी
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