ये कैसे दौर में साँस ले रहे हैं हम? प्रत्येक घर में महज एक तकनीकी इंस्ट्रूमेंट टीवी को एक मानव बम में तब्दील कर दिया गया है। रिपब्लिक के नाम पर वास्तविक रिपब्लिक को होल्ड पर रख दिया गया है। ये ऐसा अपहरण है जिसमें जिसका अपहरण किया गया है उसे वो अपहरण नहीं बल्कि इंसाफ़ पाने की कवायद लग रही है। न्यूज़ को एक नशे तरह पेश किया जा रहा है। और इस नशे में हम झूम रहे हैं। सोचिए कि कैसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। मैं उस भाषा को फिर से दुहराना भारतीयता का अपमान समझती हूँ।
अर्णब गोस्वामी- इतनी अमर्यादा, इतना फ़्रस्ट्रेशन ...आप कहाँ से लाते हो!
- पाठकों के विचार
- |
- |
- 14 Sep, 2020

मीडिया में अभद्र भाषा का इस्तेमाल तो धड़ल्ले से हो रहा है। इसमें भी रिपब्लिक टीवी पर बहस को लेकर सवाल उठते रहे हैं। अर्णब गोस्वामी की भाषा क्या सीमाओं को लांघती है?
भाषा भाव को प्रकट करने का पवित्र, सुंदर और उत्कृष्ट माध्यम है लेकिन तथाकथित एक अंग्रेज़ीदाँ पत्रकार जिनका शुभ नाम अर्णब गोस्वामी है, ने हिंदी को भी अपने कब्जे में ले लिया है और उस हिंदी को जिसका एक-एक अक्षर एक विशाल भावनात्मक (ब्रह्मांडीय और भावनीय अर्थ) अर्थ को संजोए हुए है, उस हिंदी को अपने निकृष्टतम मनोविकार को निकालने का माध्यम बना रहे हैं।