ये कैसे दौर में साँस ले रहे हैं हम? प्रत्येक घर में महज एक तकनीकी इंस्ट्रूमेंट टीवी को एक मानव बम में तब्दील कर दिया गया है। रिपब्लिक के नाम पर वास्तविक रिपब्लिक को होल्ड पर रख दिया गया है। ये ऐसा अपहरण है जिसमें जिसका अपहरण किया गया है उसे वो अपहरण नहीं बल्कि इंसाफ़ पाने की कवायद लग रही है। न्यूज़ को एक नशे तरह पेश किया जा रहा है। और इस नशे में हम झूम रहे हैं। सोचिए कि कैसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। मैं उस भाषा को फिर से दुहराना भारतीयता का अपमान समझती हूँ।