जीरा के बाजार में पैदा हुए मांग-आपूर्ति के असंतुलन ने जीरे की कीमतों को रिकॉर्ड ऊंचाई के स्तर तक पहुंचा दिया है। इसने फसलों पर हो रहे मौसम के प्रभाव को भी सही साबित कर दिया है।
मौसम के बदलने पर हमारे सरोकार कम होते जा रहे हैं। मौसम के बदलने पर अब हम लोग उतने गंभीर नहीं होते हैं। वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी के लिए 1992 में मौसम का बदलना एक सामान्य खबर नहीं होती थी।
जोशीमठ एक इशारा है कि प्रकृति किस तरह बदला लेती है। लेकिन इसका सीधा संबंध हिमालय से है। हिमालय को अगर बचाने की मुहिम शुरू हुई तो भारत का बहुत कुछ बच जाएगा, अन्यथा हमें जलवायु परिवर्तन के बुरे दौर का सामना करना पड़ेगा।
नई तरह की राजनीति करने आए आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने निराश किया है। 8 जाड़े गुजर चुके हैं और हर बार जाड़े में दिल्ली की आबोहवा खराब हो जाती है। अगर किसी पार्टी की चिन्ता पर्यावरण को लेकर नहीं है तो वो क्या खाक राजनीति करेगी। पर्यावरणीय खतरों पर वंदिता मिश्रा के चुभते सवालों के साथ उनका यह लेखः
क्या ऐसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है जिसमें तापमान अगले कुछ दशकों में औसत रूप से क़रीब 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाए? आख़िर भारत में पर्यावरण नुक़सान से बचने के लिए क्या किया जा रहा है? पर्यावरण सूचकांक में भारत फिसड्डी क्यों है?
ब्रिटेन में गर्म हवा के झोंके फिर से शुरू होने जा रहे हैं। पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। मौसम को लेकर चेतावनी जारी की गई है। मौसम के इस परिवर्तन से लोग बेहाल हैं।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का कृषि पर क्या असर होगा, यह गेहूँ की फ़सल पर इस बार साफ़ दिख गया। गेहूँ के दाने सूख गए। तो क्या आगे जल्द ही भुखमरी का संकट आने वाला है?
भारत में अगले कुछ सालों में खाद्य संकट गहराने वाला है। ऐसा एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है। यह संकट जलवायु परिवर्तन के असर से होगा। तो यह असर क्या भूखे रहने के संकट के तौर पर आएगा?
मौसम अब असमान्य व्यवहार क्यों कर रहा है? तापमान क्यों बढ़ता जा रहा है और पेड़ों की कटाई व बेतरतीब औद्योगीकरण का क्या असर हो रहा है? क्या धरती ऐसे बोझ का सहन कर पाएगी?
अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में इडा तूफ़ान के बाद अचानक बाढ़ ने तबाही लाई है। छह पूर्वी राज्यों- कनेक्टिकट, मैरीलैंड, न्यूजर्सी, न्यूयॉर्क, पेंसिल्वेनिया और वर्जीनिया में दर्जनों लोगों की मौत हो गई है।
किन्नैर में आज फिर एक भयानक हादसा हुआ। कुदरत चेतावनी दे रही है और आइपीसीसी की रिपोर्ट कह रही है कि दस बीस साल में ही हन बहुत बड़ी तबाही की ओर बढ़ रहे हैं। आलोक जोशी के साथ पर्यावरण पत्रकार हृदयेश जोशी, बीबीसी के पूर्व संपादक शिवकांत और हिमांशु बाजपेई ।
संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी छठी रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन की स्थिति अनुमान से बदतर है और जो नुक़सान हो चुका है, वह ठीक नहीं होगा या उसमें हज़ारों साल लगेंगे।
बहुत से पर्यावरण शास्त्रियों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की जंग हम हार चुके हैं। अब प्रकृति के पलटवार का इंतज़ार करने और उससे बचाव के लिए जो हम से बन सके करने के अलावा हम कुछ नहीं कर सकते।