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सीएए : ज़ुर्माना वसूलने से पहले होर्डिंग लगाए योगी सरकार ने

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के व्यस्ततम चौराहे पर योगी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी हिंसा में हुए सरकारी संपत्ति के नुक़सान की वसूली के लिए ज़िम्मेदार लोगों की तस्वीरों की होर्डिंग लगा दी है। होर्डिंग में कहा गया है कि हिंसा के लिए ज़िम्मेदार इन लोगों से 67 लाख रुपये की वसूली की जानी है।
वसूली की इस होर्डिंग में प्रदेश सरकार में आईजी रहे एस.आर. दारापुरी का फोटो है जिन्हें घटना के पहले ही यूपी पुलिस ने घर पर नज़रबंद कर दिया है। इसी होर्डिंग में घटना के एक बाद थाने जाकर अपने साथियों की पूछताछ करने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ता व रंगकर्मी दीपक कबीर व कांग्रेस नेत्री सदफ़ ज़फ़र का भी फोटो है।
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दारापुरी, सदफ़ व दीपक कबीर को ज़मानत देते हुए कोर्ट ने पाया था कि उनके ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल होने का कोई साक्ष्य भी पुलिस नहीं पेश कर सकी।

सरकार का कहर

बीते साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का कहर जारी है।
हिंसा के लिए ज़िम्मेदार बताते हुए जिन लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया था, उनमें से कई लोगों को ज़मानत भी मिल चुकी है, पर सरकार की नज़रों में नंबर बढ़ाने के लिए अधिकारी लगातार वसूली नोटिसे जारी कर रहे हैं। अब होर्डिंग व पोस्टर लगाने का सिलसिला शुरु कर दिया है।
सीएए विरोधी प्रदर्शनों को लेकर हुई हिंसा के बाद से बिफरे योगी हर मंच पर लोगों को ललकार रहे हैं और लाठी -गोली से लेकर वसूली की धमकियाँ दे रहे हैं।

अदालत रोक चुकी है वसूली 

ग़ौरतलब है कि बीते महीने इस तरह के एक मामले में  दायर याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार को एक महीने के भीतर काउंटर एफ़ीडेविट जमा करने के निर्देश दिए थे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस सौरभ श्याम के खंडपीठ ने कानपुर निवासी मोहम्मद फ़ैजान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया था।

कानपुर में बीते 19 व 20 दिसंबर को सीएए के विरोध में हिंसा हुई थी। हिंसा के दौरान दो पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर दिया गया, तमाम सार्वजनिक संपत्तियों को भी नुकसान पहुँचाया गया था। इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को चिन्हित कर उन्हें नोटिस भेजा।

अदालत के आदेश की अवहेलना?

नोटिस कानपुर के रहने वाले मोहम्मद फ़ैजान को भी मिली। उन्होंने नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका दायर की। 
जज पंकज नक़वी व जज सौरभ श्याम की पीठ ने सुनवाई की और अपर ज़िलाधिकारी द्वारा जारी नोटिस पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले से ही इस तरह के आदेशों की जाँच कर रही है।
इस आदेश के बाद याचिकाकर्ता मोहम्मद फ़ैजान को अंतरिम राहत मिली है।

 

बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इस मामले में एक महीने के भीतर काउंटर ऐफ़िडेविट दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले को उपयुक्त पीठ के सामने अगली सुनवाई के लिए  20 अप्रैल 2020 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए।

वैध नहीं हो सकती हैं नोटिसें

मुख्यमंत्री योगी की नज़रों में काबिल दिखने की होड़ में य़ूपी सरकार के अधिकारी अनापशनाप वसूली की नोटिसें जारी कर रहे हैं। इस मामले में वकीलों का कहना है कि जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री की शाबासी मिलने की होड़ में जो नोटिसें भेजी हैं वो क़ानूनी तौर पर वैध नही हैं। उनका कहना है कि संपत्ति के नुक़सान में वसूली की जा सकती है पर उसके लिए भी नियम हैं।

संपत्ति के नुकसान का एसेसमेंट उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान अथवा पूर्व जस्टिस या पूर्व जिला जज को क्लेम कमिश्नर बना पहले नुकसान का आकलन किया जाएगा।
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कुमार तथागत
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