शाहिद अली कोई नेता या अभिनेता नहीं हैं। वो कोई मौलवी या क़ौम का झंडाबरदार भी नहीं हैं। इसलिए आप उसे निश्चित तौर पर नहीं जानते होंगे। पर जानना चाहिए क्योंकि वो महान साहित्यकार प्रेमचंद की एक कहानी का नायक है। भारत की आज़ादी से बहुत पहले सन तीस के दशक में लिखी गयी प्रेमचंद की कहानी “मंदिर और मस्जिद” का मामूली नायक। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों के एक नाटक ने उसकी याद ताज़ा कर दी। कहानी का नाट्य रूपांतर किया है जानी मानी लेखिका चित्रा मुद्गल ने और निर्देशक हैं प्रसिद्ध रंगकर्मी समीप सिंह। समीप सिंह ने रोचक प्रस्तुति से इस नाटक को आज के दौर के लिए प्रासंगिक बना दिया।

प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी “मंदिर और मस्जिद” पर आधारित नाटक का मंचन हुआ, जिसमें शाहिद अली के किरदार ने दर्शकों को भावुक कर दिया। नाटक ने सांप्रदायिक सौहार्द और मानवता का संदेश दिया।
“मंदिर और मस्जिद” का कथानक तीस के दशक का है, लेकिन वो आज के दौर के सवालों का जवाब देता है। शाहिद अली गांव का एक नौजवान है। इस गांव में हिंदू और मुसलमान दोनों रहते हैं। दोनों के बीच कहीं कोई दीवार नहीं है। शाहिद के दोस्त हिंदू भी हैं। वो गांव के ठाकुरजी (भगवान) की पूजा में भी शामिल होता है। बाद में काम की तलाश में वो शहर पहुंच जाता है। एक मंदिर के बाहर चबूतरे पर आश्रय लेता है।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक