बांग्लादेश का चुनाव क्या आतंकवाद के साए में होगा? क्या कट्टरपंथी फिर से एकजुट हो रहे हैं? क्या यह चुनाव २०१४ के चुनावों से अलग परिणाम लेकर आएगा? ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिन पर भारत की ख़ास नज़र टिकी हुई है। बांग्लादेश की १६ करोड़ जनता , जिसमें १० करोड़ वोटर है, ३० दिसम्बर २०१८ को अपने लिए नई सरकार चुनेगी। शुरुआती पंद्रह साल सैनिक तानाशाही झेल चुके बांग्लादेश में १९९० के बाद से ही लोकतांत्रिक चुनाव होने शुरू हुए। चौथी सबसे बड़ी मुसलिम आबादी वाला बांग्लादेश लगातार विश्व समुदाय के बीच एक ज़िम्मेदार लोकतंत्र के रूप में खड़ा होने की कोशिश कर रहा है, पर कट्टरपन्थी उसे पीछे धकेल र हैं।
बांग्लादेश में उदारवादियों की जीत पर भी मजबूत होंगे कट्टरपंथी?
- दुनिया
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- 28 Dec, 2018
बांग्लादेश में आवामी लीग को उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष ताक़तों का प्रतीक माना जाता है। इसके बावजूद उनकी जीत से क्या कट्टरपंथी ही मजबूत होंगे?

जमात कमज़ोर
पिछले दिनों में सबसे बड़ा कट्टरपंथी गुट जमात-ए-इस्लामी कमज़ोर हुआ है। उसके कई लीडर फाँसी पर चढ़ाए गए और कई जेलों में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं। पर यह समझना ग़लत होगा कि कट्टरपंथी बांग्लादेश में कमज़ोर हुए हैं। हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम नाम की एक नई पार्टी आजकल शेख़ हसीना की आवामी लीग से काफ़ी पींगें बढ़ा रही है। उसने पिछले सितम्बर में संसद से यह क़ानून पास करा लिया कि क़ौमी मदरसों से मिली डिग्री की मान्यता होगी और उस आधार पर सरकारी नौकरियाँ भी मिलेंगी। शेख़ हसीना ने यह एलान भी कर दिया कि वो 500 नए मदरसे बनवाएँगी। मदरसों को सऊदी अरब से पैसे लेने की भी छूट होगी। पहले भी शेख़ हसीना इस्लामिक पार्टियों जैसे बांग्लादेश तरिकत फ़ेडरेशन और ज़ाकिर पार्टी का समर्थन लेती रहीं हैं।