बिहार के चारा घोटाले की शुरुआत पशुपालन विभाग के छोटे स्तर के कर्मचारियों ने की, जिन्होंने कुछ फर्जी फंड ट्रांसफर दिखाए। उस समय बिहार और झारखंड अलग नहीं थे। मामला 1985 में पहली बार सामने आया जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।
चारा घोटाला में लालू यादव फँसे या फँसाए गए?
- विश्लेषण
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- 20 Apr, 2021

झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले शनिवार को लालू प्रसाद को जमानत दे दी। वह आधी सज़ा जेल में काट चुके हैं। चारा घोटाला में लालू यादव फँसे या फँसाए गए?
लालू प्रसाद के शासनकाल में 1996 में राज्य के वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों और डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया कि अतिरिक्त निकासी की जाँच करें। इसी समय डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा के पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा मारा। इस छापेमारी में बड़ी मात्रा में दस्तावेज़ मिले, जिसमें अवैध निकासी और अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच साठगाँठ का पता चला।