बिहार के चारा घोटाले की शुरुआत पशुपालन विभाग के छोटे स्तर के कर्मचारियों ने की, जिन्होंने कुछ फर्जी फंड ट्रांसफर दिखाए। उस समय बिहार और झारखंड अलग नहीं थे। मामला 1985 में पहली बार सामने आया जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।