लगभग एक ही समय में तीन अलग-अलग घटनाओं ने भारतीय लोकतंत्र की ओर देश और दुनिया का ध्यान खींचा है। एक घटना है भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना का संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित सैन फ्रांसिस्को में एसोसिएशन ऑफ इंडो-अमेरिकन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बयान। दूसरी घटना है धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) की ओर से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर की गयी ताजा टिप्पणी और भारत की प्रतिक्रिया।
न्यायालय के खिलाफ मुहिम लोकतंत्र को कतई मजबूत नहीं कर सकती
- विश्लेषण
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- 4 Jul, 2022

नूपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अदालत के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान क्यों चलाया गया?
तीसरी घटना नॉम चोमस्की और महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी की ओर से उमर खालिद को तुरंत रिहा करने की मांग है।
तीनों घटनाएं भारत में धार्मिक व राजनीतिक असहिष्णुता, मानवाधिकार हनन की घटनाएं और भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लाचार होने को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती हैं। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को लगता है कि देश में संविधान और लोकतंत्र की समझ विकसित नहीं हो सकी है। यही कारण है कि सत्ताधारी दल की अपेक्षा न्यायालय से सरकारी योजनाओं के समर्थन की होती है जबकि विपक्ष अपेक्षा करता है कि न्यायालय उनके मनोनुकूल तरीके से व्यवहार करे।