केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो साल पहले असम के लखीमपुर में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि मोदी सरकार असम को कश्मीर नहीं बनने देगी और इसीलिए एनआरसी को लागू किया गया है ताकि प्रत्येक घुसपैठिए को चुन-चुनकर निकाला जा सके। शाह ने असम के बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करने की घोषणा की थी।
असम एनआरसी: संदिग्ध नामों के बहाने मुसलिम प्रताड़ना की तैयारी?
- असम
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- 15 Oct, 2020

फ़ाइल फ़ोटो
जिस तरह एनआरसी प्रक्रिया के दौरान कठोर मापदण्डों को अपनाया गया और ख़ास तौर पर मुसलमानों को बार-बार कागज दिखाने के लिए मजबूर किया गया, उसे देखते हुए किसी विदेशी का नाम सूची में शामिल होने का आरोप निराधार प्रतीत होता है। इसके बावजूद अब असम में एनआरसी अधिकारियों ने तैयार रजिस्टर से ‘अयोग्य’ नामों को हटाने का आदेश क्यों दिया है।
पिछले साल 31 अगस्त को जब असम एनआरसी की अंतिम सूची सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में प्रकाशित हुई और 3.3 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19 लाख लोगों के नाम सूची से बाहर रह गए तो बीजेपी को सदमा लगा था। सूची से बाहर रहने वालों में मुसलमानों के साथ हिन्दू भी थे जो निर्धारित कागजात नहीं पेश करने के चलते सूची से बाहर रह गए थे। बीजेपी और संघ परिवार की उस काल्पनिक थ्योरी के साथ एनआरसी की अंतिम सूची मेल नहीं खाती थी कि असम में करोड़ों बांग्लादेशी घुसपैठिए रहते हैं, जिनकी शिनाख्त कर डिटेंशन सेंटर में बंद करने की ज़रूरत है। यही वजह है कि बीजेपी ने इस एनआरसी को मानने से इनकार कर दिया और अमित शाह ने कहा कि पूरे देश के साथ असम में नए सिरे से एनआरसी अपडेट की प्रक्रिया चलाई जाएगी।