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फोटो साभार: ट्विटर/@AmitShah

'सेंगोल' के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक होने का दस्तावेजी साक्ष्य नहीं: कांग्रेस

कांग्रेस ने शुक्रवार को दावा किया है कि 'सेंगोल' के बारे में यह साबित करने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि ब्रिटिश और भारत के बीच सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसे सौंपा गया था। इसने कहा है कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालचारी और जवाहरलाल नेहरू के बीच 'सेंगोल' के बारे में ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है।

एक ट्वीट में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, '…इस आशय के सभी दावे सतही और आम– बोगस हैं। पूरी तरह से कुछ लोगों के दिमाग में निर्मित और पूरी तरह से वाट्सऐप में फैलाया गया, और अब मीडिया में ढोल पीटने वालों के लिए है।' उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके 'ढोल बजाने वाले' तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए राजदंड का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

उन्होंने ट्वीट में कहा है, 'क्या यह कोई आश्चर्य की बात है कि नई संसद को वाट्सऐप यूनिवर्सिटी के झूठे आख्यानों से भरा जा रहा है? अधिकतम दावों, न्यूनतम साक्ष्यों के साथ भाजपा/आरएसएस के ढोंगियों का एक बार फिर से पर्दाफाश हो गया है।'

जयराम रमेश ने आगे चार बिंदुओं में बताया है कि कैसे बीजेपी ने जो दावे किए हैं उसके लिए कोई ठोस दस्तावेज नहीं हैं-  

1. तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा कल्पना की गई और मद्रास शहर में तैयार की गई एक राजसी राजदंड वास्तव में अगस्त 1947 में नेहरू को सौंपा गया था।

2. माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू द्वारा इस राजदंड को भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है। इस आशय के सभी दावे सतही और आम— बोगस हैं। पूरी तरह से कुछ लोगों के दिमाग में निर्मित और वाट्सऐप में फैलाया गया, और अब मीडिया में ढोल पीटने वालों के लिए। इस पर राजाजी के त्रुटिहीन साख वाले दो स्कॉलरों ने आश्चर्य व्यक्त किया है।

3. राजदंड को बाद में इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखा गया था। 14 दिसंबर, 1947 को नेहरू ने वहां जो कुछ कहा, वह सार्वजनिक रिकॉर्ड में है।

4. राजदंड का इस्तेमाल अब पीएम और उनके ढोल-नगाड़े बजाने वाले तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं। यह इस ब्रिगेड की विशेषता है जो अपने विकृत उद्देश्यों के अनुरूप तथ्यों को तोड़ती-मरोड़ती है।

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रमेश ने पूछा है कि असली सवाल यह है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद का उद्घाटन करने क्यों नहीं दिया जा रहा है?

जयराम रमेश की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब पीएम मोदी द्वारा 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन किए जाने के बाद 'सेंगोल' को लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के करीब रखे जाने की घोषणा की गई है। 

कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूछा कि पार्टी भारतीय परंपराओं और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है। एक ट्वीट में उन्होंने कहा, "... भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में तमिलनाडु के एक पवित्र शैव मठ द्वारा पंडित नेहरू को एक पवित्र सेंगोल दिया गया था, लेकिन इसे 'चलने वाली छड़ी' के रूप में एक संग्रहालय में भेज दिया गया था।"

अमित शाह ने यह भी कहा कि एक पवित्र शैव मठ, थिरुवदुथुराई अधीनम ने भारत की आजादी के समय सेंगोल के महत्व के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस अधीनम के इतिहास को बोगस बता रही है! कांग्रेस को अपने व्यवहार पर विचार करने की जरूरत है।'

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि जो पार्टियां नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर रही हैं, वे वंश-वाद से चलती हैं, 'जिनके राजशाही तरीके हमारे संविधान में गणतंत्रवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।'

ट्वीट्स की एक श्रृंखला में नड्डा ने बहिष्कार को संविधान के निर्माताओं का अपमान बताया। भाजपा प्रमुख ने कहा कि कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार एक साधारण तथ्य को पचा नहीं पा रहे हैं कि भारत के लोगों ने एक विनम्र पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति पर अपना विश्वास रखा है। उन्होंने कहा कि राजवंशों की अभिजात्य मानसिकता उन्हें तार्किक सोच से रोक रही है।
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बता दें कि गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को सेंगोल के संसद में स्थापित किए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि यह राजदंड अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था। गृह मंत्री ने कहा कि इस राजदंड को 'सेंगोल' कहा जाता है जो तमिल शब्द 'सेम्माई' से आया है और जिसका अर्थ है 'नीति परायणता'। उन्होंने कहा कि यह सेंगोल पौराणिक चोल राजवंश से संबंधित है। शाह ने कहा कि सेंगोल स्वतंत्रता और निष्पक्ष शासन की भावना का प्रतीक है।

congress vs bjp on sengol transfer power symbol - Satya Hindi

अमित शाह ने बुधवार को दावा किया था, 'पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात लगभग 10:45 बजे तमिलनाडु से आए अधिनम के माध्यम से सेंगोल को स्वीकार किया; यह अंग्रेजों से हमारे देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था।' उन्होंने कहा था कि हमारी सरकार का मानना है कि राजदंड के लिए संसद से बेहतर कोई जगह नहीं है।

गृहमंत्री ने कहा कि संसद भवन नए भारत के निर्माण में हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का एक सुंदर प्रयास है।

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