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पीएम मोदी के सामने क्यों हाथ जोड़े खड़े रहते हैं आडवाणी?

बेचारे आडवाणी! एक समय बीजेपी के ‘लौहपुरूष’ माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी अब बीजेपी के किसी भी कार्यक्रम में जहाँ दिखते हैं, ‘बेचारे’ जैसी मुद्रा में ही दिखते हैं।
pm narendra modi ignores lal krishna advani - Satya Hindi
पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसी तस्वीरें सामने आ चुकी हैं जब आडवाणी पीएम मोदी के सामने याचक की मुद्रा में खड़े दिखाई दिए हैं। अब एक बार फिर 24 दिसंबर को ऐसी ही फ़ोटो सामने आई है जिसमें आडवाणी हाथ जोड़े खड़े हैं और पीएम मोदी उन्हें अनमने ढंग से देख रहे हैं।
pm narendra modi ignores lal krishna advani - Satya Hindi
ये वही नरेंद्र मोदी हैं जो किसी समय आडवाणी की रथयात्रा के सारथी हुआ करते थे। ये वही नरेंद्र मोदी हैं जिनको इस मुक़ाम तक पहुँचाने का श्रेय भी आडवाणी को ही जाता है। गोधरा दंगों के बाद जब गुजरात में मोदी सरकार की भूमिका को लेकर बड़े सवाल उठे, और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब मोदी को हटाने पर गंभीरता से विचार कर रहे थे, तब आडवाणी ही मोदी के ‘रक्षा कवच’ बनकर अड़ गए थे और आडवाणी की वजह से ही मोदी की कुर्सी बच पाई थी। अगर तब मोदी मुख्यमंत्री पद से हट गए होते तो आज राजनीति में उनकी क्या जगह होती, कोई कह नहीं सकता।
कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर एक विडियो ख़ूब वायरल हुआ था जिसमें एक जनसभा में मोदी क़तार में खड़े पार्टी के बाक़ी नेताओं से तो मिलते हैं लेकिन आडवाणी से नहीं। आडवाणी याचक की तरह हाथ जोड़े खड़े रह जाते हैं लेकिन मोदी उन पर ध्यान दिए बिना ही आगे निकल जाते हैं। नीचे देखें विडियो - 
इसी तरह कुछ समय पहले एक और तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। मौक़ा था संसद पर हुए हमले में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने के समारोह का। समारोह में जब आडवाणी पहुँचे तो उनके खड़े होने के लिए जगह नहीं थी। तब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी आगे आए और सम्मान के साथ आडवाणी को ले जाकर उनको उचित स्थान दिलवाया। 
pm narendra modi ignores lal krishna advani - Satya Hindi
इसके कुछ समय बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने बीजेपी में आडवाणी व अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा को लेकर ट्वीट भी किया था।
अब आई इस ताज़ा तस्वीर ने एक बार फिर इस सवाल को उठाया है कि इतने सालों तक देश की राजनीति की धुरी रहने के बाद आडवाणी याचक क्यों बने हुए हैं। 
बीजेपी में आडवाणी की उपेक्षा का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 25 सितंबर, 2015 को हुआ था जब दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशती समारोह में उन्हें बुलाया ही नहीं गया था। विस्तार से पढ़ें - ‘लौहपुरुष’ को ज़ंग लगा कबाड़ क्यों बनाया?
दरअसल, मोदी और आडवाणी के रिश्ते 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की दावेदारी को लेकर ख़राब हो गए थे। उसके बाद ये रिश्ते कभी नहीं सुधरे। माना जा रहा था कि मोदी आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के लिए उनके नाम का समर्थन करेंगे लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
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क़मर वहीद नक़वी
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