सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है। पहले ही दिन कोर्ट ने यह सवाल उठा दिया है कि क्या अंग्रेज़ी हुकूमत में अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंटने के लिए बनाए गए इस क़ानून की आज कोई ज़रूरत है? सुप्रीम कोर्ट ने इसे संस्थानों के काम करने के रास्ते में गंभीर ख़तरा बताते हुए इसकी ऐसी असीम ताक़त के ग़लत इस्तेमाल की आशंका जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह नोटिस जारी करके केंद्र से इस पर जवाब मांगेगा।
राजद्रोह क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट के तेवर तल्ख़ क्यों हैं?
- देश
- |
- |
- 16 Jul, 2021

इस तरह की टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट कई बार कर चुका है। यह पहली बार है कि वह राजद्रोह के क़ानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट पहले कई बार राजद्रोह क़ानून को ख़त्म करने संबंधी याचिकाओं को खारिज कर चुका है।
तीन जजों की बेंच में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ राजद्रोह क़ानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना इस पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय पीठ के अन्य सदस्य हैं। पहले ही दिन सुनवाई के दौरान पीठ ने इस क़ानून को लेकर काफ़ी तल्ख़ टिप्पणी की है। यह याचिका मैसूर के मेजर जनरल (रिटायर्ड) एसजी वोम्बटकेरे ने दाख़िल की है। इसमें आईपीसी की धारा 124ए (यानी राजद्रोह जिसे अक्सर देशद्रोह कह दिया जाता है) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में इसे आईपीसी से पूरी तरह हटाने की अपील की गई है।