loader
UNICEF

कोरोना के कारण भुखमरी के कगार पर अफ़्रीका

कोरोना महामारी की वजह से विश्व अर्थव्यवस्था की क्या हालत हो गई है, इसे इससे समझा जा सकता है कि लगभग 27 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुँच गए हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम ने कहा है कि लगभग 4 करोड़ लोग अकाल की चपेट में आ सकते हैं। कोरोना के पहले यह संख्या 3.4 करोड़ थी।

'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने एक ख़बर में यह जानकारी दी है। 

एफ़एओ की रिपोर्ट

विश्व खाद्य कार्यक्रम ने खाद्य व कृषि संगठन के साथ एक साझी रिपोर्ट जारी करते हुए चेतावनी दी है कि कोरोना महामारी का आर्थिक प्रभाव, युद्ध व प्राकृतिक संकट का मिलाजुला असर यह है कि अगले चार महीनों में लगभग 23 भौगोलिक इलाक़ों में खाने पीने की ज़बरदस्त किल्लत हो सकती है। अफ्रीका, सेंट्रल अमेरिका, उत्तरी कोरिया और अफ़ग़ानिस्तान इसकी चपेट में आ सकते हैं। 

अफ्रीका में कोरोना संक्रमण एक बार फिर बढ़ने और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को उसकी चपेट में आने से वहाँ स्थिति विशेष रूप से ज़्यादा खराब है। 

ख़ास ख़बरें
दानदाता संस्थाओं ने पिछले दिनों इस नाजुक स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा है कि इथियोपिया की हालत सबसे खराब है जहाँ अकाल की स्थिति भयावह रूप ले चुकी है। इसके अलावा दक्षिण मैडागास्कर में असाधारण सूखे के कारण लाखों लोगों को खाने-पीने की चीजों की कमी हो रही है।

भयावह स्थिति, दुहरी मार

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का कहना है कि गरीब देशों में आर्थिक संकट पहले से है और कई देशों में हथियारबंद संघर्ष भी चल रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे और कुछ इलाक़ों में बाढ़ की स्थिति भी है। ये देश इस स्थिति में भी नहीं है कि अगले संकट का सामना कर सकें। 

लेकिन पिछले दो साल में स्थिति बदतर हुई है।

कोरोना के कारण आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ी है कि मानवीय संकट खड़ा हो गया है। ऐसा गरीब ही नहीं, धनी देशों में भी हो रहा है, वहाँ भी लाखों लोगों की नौकरी गई है और लाखों लोग बदतर स्थिति में पहुँच गए हैं।

कौन करे मदद!

'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने पाया है कि अफ्रीका महादेश में कोरोना की दूसरी लहर का नतीजा यह हुआ है कि आर्थिक मदद देने की जो अनौपचारिक सुरक्षा प्रणाली पहले कारगर थी, वह टूट गई।

पहले जान पहचान के लोग, रिश्तेदार, पड़ोसी वगैरह संकट पड़ने पर एक-दूसरे की मदद किया करते थे। पर बेरोज़गारी और जीवनयापन के दूसरे संसाधन ख़त्म होने के कारण ये लोग किसी की मदद करने की स्थिति में नहीं है। सरकारी मदद पहले ही ख़त्म हो चुकी है। 

कुछ धनी देश कोरोना महामारी से वापस निकल कर सामान्य स्थिति की ओर लौट रहे हैं तो कुछ गरीब देश पहले से भी बदतर हालत में पहुँच गए हैं। कोरोना के कारण धनी और गरीब देशों के बीच की खाई पहले से अधिक चौड़ी हो गई है और यह बढती जा रही है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम की रिपोर्ट

विश्व खाद्य कार्यक्रम के वरिष्ठ निदेशक (ऑपरेशन्स) आमेर दाऊदी ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर इससे बदतर हालत मैनें कभी नहीं देखी। अमूमन दो, तीन या चार तरह के संकट होते हैं, मसलन, संघर्ष, सूखा वगैरह। पर अब कई तरह के संकट एक साथ चल रहे हैं।"

दक्षिण अफ्रीका मोटे तौर पर खाद्य-सुरक्षित देश है, यानी यहाँ खाने-पीने की चीजों की किल्लत नहीं होती है। पर इस समय देश भूख के संकट से गुजर रहा है। 

पिछले एक साल में कोरोना की तीन लहरों के कारण दसियों हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है, ये वे लोग थे जिन पर पूरा घर निर्भर था। इनके नहीं रहने पर अब इन परिवारों के पास खाद्य सामग्री खरीदने के पैसे नहीं हैं। 

corona worsens world economy, africa faces starvation - Satya Hindi
अफ्रीका महादेश में कोरोना की चपेट में लाखों लोग आए।un.org

पहले खुशहाल, अब फटेहाल

इसे ईस्टर्न केप प्रांत के डंकन इलाक़े की बदली हुई स्थिति से समझा जा सकता है। यहाँ के लाखों लोगों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई।

यहाँ से कुछ दूरी पर ही ईस्ट लंदन शहर स्थित है, जो एक औद्योगिक नगरी है। वहाँ मर्सडीज़ बेंज के कार कारखाने के अलावा कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण की कई छोटी-बड़ी ईकाइयाँ थीं और उनमें बड़ी तादाद में लोगों को रोज़गार मिला हुआ था।  'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने कई लोगों से बात की। अपने दो कमरों के घर में बैठी अनेलेसिया लैन्जेनी ने कहा कि उन्हें किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, वे खुशहाल थीं। उनके पिता मर्सडीज़ बेन्ज के कार कारखाने में काम करते थे। रिटायर होते वक़्त उन्हें इतने पैसे मिले कि उन्होंने दो कमरों का पक्का मकान बनवा लिया। लेन्जेनी ख़ुद पास के ही एक सी-फ़ूड रेस्तरां में काम करती थीं।

corona worsens world economy, africa faces starvation - Satya Hindi
un.org

बेरोज़गारी बढ़ी

जब कोरोना की पहली लहर आई तो वह रेस्तरां बंद हो गया और अनेलेसिया बेरोज़गार हो गईं। ख़ैर, पिता को मिलने वाली 120 डॉलर की पेन्शन से घर फिर भी चल रहा था, हालांकि अब पहले जैसी संपन्नता नहीं रही। उसके बाद उनके पिता कोरोना के शिकार हो गए, उनकी मौत हो गई और वह पेंशन भी बंद हो गई।

अब अनेलेसिया के पास आमदनी का कोई ज़रिया नहीं बचा है। वे बदहाल हैं। एक पड़ोसन ने उनकी मदद की और उन्हें हर हफ़्ते कुछ न कुछ उधार देती रहीं। पर फिर उस पड़ोसन के पति कोरोना की चपेट में आकर चल बसे। अब वह पड़ोसन खुद दूसरों की मदद पर निर्भर हैं। 

तेम्बकज़ी स्तिशी की स्थिति तो इससे भी बुरी है। वह अपने बच्चे की देखभाल करने वाली अकेली माँ हैं। जब उनके पास कोई चारा न रहा तो वे घर-घर घूम कर सिर्फ 750 रुपए में महीने भर झाड़ू-पोंछा लगाने का काम ढूँढने लगीं, लेकिन उन्हें वह काम भी नहीं मिला। ज़्यादातर लोगों की स्थिति ऐसी नहीं रही कि लोग इस काम के लिए किसी को रखें और उसे पैसे दें, लोग यह काम खुद करने लगे हैं।

तेम्बकज़ी स्तिशी और अनेलेसिया लैन्जेनी अब दाने-दाने को मुँहताज हैं। 

यहाँ से 200 मील पश्चिम में स्थित है कारू क्षेत्र। यहाँ सूखे का आठवाँ साल चल रहा है। किसी समय का हरा-भरा इलाक़ा धूल-धूसरित काले-सूखे इलाक़े में तब्दील हो चुका है। ज़ोलिले हनाबे 70 साल के बुजुर्ग हैं, जिनके पास 2,400 एकड़ खेत हैं। 

रंगभेद के जमाने में बकरियाँ और सूअर खरीद कर पालने वाले और उससे होने वाली आमदनी से घर का खर्च चलाने के अलावा कुछ पैसे बचा कर खेत खरीदने वाले हनाबे बेहद निराश हैं। 

सूखे के कारण नदियाँ सूख गईं, खेत सूख गए, फसल चौपट हो गई, जानवर मर गए, हनाबे ने अपनी जेब से पैसे लगा कर जानवरों के चारे- पानी की व्यवस्था की। किसी तरह फ़ार्म बचाए रखा।

कोरोना की मार

हनाबे ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' से कहा कि कोरोना की मार पड़ी तो उन्हें अपना फ़ार्म बंद करना पड़ा, कई लोगों को नौकरियों से निकालना पड़ा, जानवर मर गए, उनका काम-धंधा एकदम चौपट हो गया, उनके सारे पैसे डूब गए। अब वे निराश और फटेहाल हैं। 

वे कहते हैं, "मैं शायद एक संकट संभाल लेता, पर एक साथ दो-दो संकट?"

उनका यह वाक्य पूरे अफ्रीकी महादेश की कहानी कहता है, अफ्रीका महादेश सूखे और कोरोना महामारी की दुहरी मार से कराह रहा है और आपातकाल की स्थिति पैद हो गई है। एक संकट से यह उबर लेता, पर एक साथ दो-दो संकट से यह कैसे उबरेगा?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

अर्थतंत्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें