एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। ब्रिटेन अब फिसलकर पाँचवें से छठे स्थान पर चला गया है। हालाँकि, कोरोना काल में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के ख़राब प्रदर्शन को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन अहम बात यह भी है कि भारत ने इन्हीं हालातों में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया। पर सवाल है कि कितना बेहतर प्रदर्शन किया? कोरोना काल को छोड़िए, इसकी तुलना आज़ादी के समय से ही क्यों न किया जाए! 1950 में भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में कहाँ ठहरती थी?
भारत की जिस अर्थव्यवस्था को मौजूदा समय में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है, वैसा ही हाल 1950 में भी था। नॉमिनल जीडीपी की रैंकिंग के अनुसार दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में भारत छठे पायदान पर था। और 2020 में भी वह छठे स्थान पर ही रहा। पाँचवें स्थान पर तो 2021 के आख़िर तीन महीने में आया।
1950 के बाद रैंकिंग में भारत पिछड़ते चला गया। 1960 में भारत की रैंकिंग 8वीं हो गई, 1970 में नौवीं और 1980 में तो 13वीं स्थान पर पहुँच गई। हालात सुधरने शुरू तब हुए जब 1990 में भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया गया। खुले बाज़ार की नीति अपनाई गई, सरकारी नियंत्रण को कम किया गया और निजी निवेश को बढ़ावा दिया गया। सीधे तौर पर कहें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण हुआ।
1990 में ही उस रैंकिंग में भारत 12वें स्थान पर रहा। हालाँकि, इसके बाद भी साल 2000 में भारतीय अर्थव्यवस्था रैंकिंग में 13वें स्थान पर रही। 2010 में यह फिर से ऊपर चढ़ी और 9वें स्थान पर रही। और 2020 में यह छठे स्थान पर रही।
यह कहा जा सकता है कि नॉमिनल जीडीपी की रैंकिंग के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले जहाँ 1950 में थी वहीं वह 2020 में भी थी। 2021 के आख़िर में भले ही वह एक पायदान ऊपर चढ़ गई हो।
इसके बाद यदि यह तर्क दिया जाए कि हालात तो पहले से काफ़ी सुधरे हैं। लोगों की आय बढ़ी है। पर कैपिटा इनकम यानी प्रति व्यक्ति आय जहाँ 1950 में क़रीब 60 डॉलर थी वहीं मौजूदा समय में यह 2200 डॉलर है। यदि इन आँकड़ों की तुलना की जाए तो भले ही बड़ा उछाल दिखे, लेकिन ऐसा उछाल दुनिया भर में आया है।
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प्रति व्यक्ति आय का सबसे बेहतर आकलन तो इसकी रैंकिंग से पता चलता है। 205 देशों में भारत की रैंकिंग 158 है। यानी भारत की अर्थव्यवस्था ऐसे संकेतकों से जितना भी मनोहर दिखे, लेकिन आबादी के हिसाब से जब इसका आकलन किया जाए तो हम पिछड़ते दिखते हैं। यही कारण है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे पाँच बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल तो हो गई है लेकिन आम लोगों की हालत बाक़ी विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के लोगों की तुलना में बेहद ख़राब है।
अब ब्रिटेन को ही देख लें। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था भारत से पीछे छठे स्थान पर है, लेकिन वहाँ प्रति व्यक्ति आय काफी ज़्यादा है। मौजूदा समय में ब्रिटेन में पर कैपिटा इनकम 47 हज़ार अमेरिकी डॉलर है, जबकि भारत में पर कैपिटा इनकम मात्र 2200 डॉलर है।
ब्रिटेन की मौजूदा स्थिति इसलिए भी ख़राब है कि वहाँ लोग महंगाई से जूझ रहे हैं और लंदन में तो जीवन-यापन करना बेहद महंगा हो गया है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी थी। कहा जा रहा है कि इसीलिए वह पीछे चली गई। भारत 2021 के अंतिम तीन महीनों में ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से जीडीपी के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने पहली तिमाही में अपनी बढ़त बढ़ा दी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के इस वर्ष 7% से अधिक बढ़ने का अनुमान है। हालाँकि, यह पहले की उम्मीदों से कम है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय ने हाल ही में आँकड़े जारी किए थे।
ऐसे विकास के साथ ही विदेशी कर्ज भी बढ़ा है। भारत का विदेशी कर्ज मार्च 2022 के अंत तक एक साल पहले के मुकाबले 8.2 फीसदी बढ़कर 620.7 अरब डॉलर हो गया है। अर्थव्यवस्था के आकार, तरक्की और कर्ज व जिम्मेदारियों से इतर आम लोगों की बात करें तो सवाल है कि आख़िर आम लोगों की आय के मामले में भारत क्या उस गति से तरक्की कर पाया जिस गति से बांग्लादेश जैसे देश कर पाए। आखिर विकसित देशों की तरह आम लोगों का जीवन स्तर क्यों नहीं सुधर रहा?
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