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सरकारी विज्ञापन चाहे जो दावा करें, अर्थव्यवस्था की रफ़्तार हो रही है धीमी

पुलवामा आतंकवादी हमला, बालाकोट आतंकवादी शिविर पर भारत की कार्रवाई और विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी की ख़बरों के बीच एक ख़बर दब गई कि अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो गई है। बहुप्रचारित चुनाव और उसकी भांति-भांति की सरकारी विज्ञापनों और प्रचार के शोर में भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी रफ्तार खोना शुरू कर दिया है। सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस  का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही अक्तूबर-दिसंबर में विकास दर 6.6 प्रतिशत रह गई है। गुज़री पांच तिमाहियों में यह सबसे कम रफ़्तार है। अभी और कम होने का अनुमान है। इसका पता इस बात से भी चलता है कि
 कार बनाने वाली मशहूर कंपनी टोयोटा ने फ़रवरी महीने में 11760 गाड़ियों की बिक्री की है। कंपनी ने पिछले साल इसी महीने 11864 गाड़ियाँ बेची थीं। कंपनी ने पिछले साल इसी महीने में 841 गाड़ियों का निर्यात किया था और इस साल यह सिर्फ़ 737 गाड़ियाँ रहीं। यानी निर्यात भी कम रहा। इसका चौतरफा असर आगे मालूम होगा।
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कम हुआ है भ्रष्टाचार?

वैसे तो कार बाज़ार का मानना है कि चुनाव से पहले नकदी की कमी रहती है और ख़रीदारी प्रभावित होती है। लेकिन सरकार जब दावा कर रही है कि भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है और डिजिटल लेन देन हो रहा है तो कैसी नकदी और कैसी कमी। यही नहीं, रेडियो पर धुंआधार प्रचार आ रहा है कि देश के नौजवान अपने पैरों पर खड़े होकर स्वरोज़गार से आगे बढ़ रहे हैं। गावों के बेरोज़गार युवक कौशल केंद्रों में प्रशिक्षण पा रहे हैं और मनरेगा का पैसा खाते में जा रहा है। इसलिए भ्रष्टाचार कम हुआ है।
मनरेगा का पैसा खातों में देना तकनीक सुलभ होने और इंटरनेट के साथ डिजिटल लेन-देने का विस्तार होने से संभव हुआ है। लेकिन सरकार इसका भी प्रचार कर रही है। और तो और, प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। भ्रष्टाचार का विकास दर से सीधा संबंध भले न हो। लेकिन विकास दर कम होने की ख़बर, कारों की बिक्री कम होने की ख़बर से पुष्ट होती है। भ्रष्टाचार कम होने का दावा बेरोज़गार आदमी के लिए बहुत मतलब का नहीं है।
सच्चाई पर पर्दा डालते प्रचार! दावा किया जा रहा है कि गाँवों में कौशल केंद्रों और मुद्रा योजना से स्वरोज़गार बढ़ा है पर विकास दर कम हो रही है तो इस दावे की सत्यता पर शक होना स्वाभाविक है। दूसरी ओर,
सीएसओ ने पहले अनुमान लगाया था कि जीडीपी विकास की दर 7.2 प्रतिशत होगी, लेकि अब यह इसके 7 प्रतिशत तक होने की भविष्यवाणी कर रही है।
ऐसे में चुनाव से पहले किए जा रहे धुंआधार सरकारी विज्ञापनों का क्या मतलब है? विज्ञापनों का हाल यह है कि सुबह आठ से नौ बजे के बीच एक घंटे में 17 सरकारी विज्ञापन आए। ज्यादातर में प्रधानमंत्री की आवाज़ भी थी।
इन विज्ञापनों में यही दावा किया जा रहा है कि सब कुछ बढ़िया है। बेहतर हुआ है। दूसरी ओर, सीएसओ के अधिकारियों का कहना है कि पूर्वानुमान में कमी करने का मतलब है कि साल की अंतिम या चौथी तिमाही में विकास दर और कम होगी। अनुमान है कि यह 6.4 प्रतिशत रह जाएगी। अप्रैल-जून की पहली तिमाही के लिए विकास दर 8.2 प्रतिशत से कम करके 8 प्रतिशत कर दी गई थी, जबकि जुलाई से सितंबर की दूसरी तिमाही के लिए इसे 7.1 प्रतिशत से 7 प्रतिशत कर दिया गया था।
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इस साल खेती में विकास होगा और कम

खेती के क्षेत्र में हालत और ख़राब है। इसका पता इस बात से लगता है कि सरकार किसानों को नकद दे रही है। अगर स्थिति ठीक होती या कुछ भी करने की स्थिति होती तो नकद बांटने की कोई ज़रूरत नहीं थी। एक तरफ़ तो सरकार किसानों की सहायता के लिए उन्हें नकद बांट रही है, दूसरी ओर डीजल, बिजली, खाद, बीज आदि के दाम बढ़ा कर, खेती के काम आने वाले ट्रैक्टर और फसल कटाई की मशीनों पर जीएसटी लगा कर और किसानों को उनकी फसल का उचित दाम न देकर खेती का हाल और खराब कर रही है। अनुमान है कि खेती के क्षेत्र में विकास पिछले साल के 5 प्रतिशत के मुकाबले इस साल (2018-19) में 2.7 प्रतिशत ही रह जाएगा।

दावों पर भरोसा करें कैसे ?

उल्लेखनीय है कि आंकड़ों के मामले में यह सरकार बिल्कुल पारदर्शी नहीं है। आंकड़ों को लेकर विवाद होते रहे हैं। और आंकड़े ही क्यों सरकारी दस्तावेज़ों में गलत फ़ोटो के उपयोग के मामले हैं। विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर को हटाए जाने के बावज़ूद इलाहाबाद में हुए प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन के लिए छपी बुकलेट में उनकी तस्वीर थी। इसलिए सरकारी दावों को काटना मुश्किल है, पर ये दावे तो सरकारी ही हैं।
सरकार ने अगस्त में जारी अपने ही आंकड़ों को नवंबर में ख़ारिज कर दिया था और नए आंकड़े देकर बताया कि 2014 से 2018 के बीच एनडीए के पहले चार साल में विकास की रफ़्तार यूपीए के दौर से ज़्यादा रही है। नीति आयोग और सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछली सरकार के समय जीडीपी वह नहीं थी जो बताई गई। इसके लिए पिछली सरकार के समय के आंकड़े वेबसाइट से हटा दिए गए।
नए आंकड़ों के मुताबिक 2005-06 के बीच जिस विकास दर को 8 फ़ीसदी से ऊपर माना जा रहा था, वह 6.7 फ़ीसदी ही थी। इस संबंध में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने कहा था कि इसमें नई विधि का इस्तेमाल किया गया है जो पुरानी विधि से बेहतर है। मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्य - पीसी मोहनन जो आयोग के कार्यकारी चेयरपर्सन भी थे और जेवी मीनाक्षी ने जनवरी में सरकार के साथ कुछ मुद्दों पर असहमति होने के चलते इस्तीफ़ा दे दिया था।
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संजय कुमार सिंह
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