सरकार के निर्देश पर आरबीआई ने कल दो हजार के नोटों का चलन बंद करने की घोषणा की। पत्रकार संजय कुमार सिंह बता रहे हैं कि इस निर्णय से भारत सरकार की नोटबंदी नीति और भारतीय करंसी की साख क्यों दांव पर लग गई है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के चुनाव बाद घटनाक्रम को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो टिप्पणी की है, उससे उस समय के घटनाक्रम मेल नहीं खाते हैं। ज्यादा पुराना इतिहास नहीं है। जानिएः
अमेरिकी फ़र्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने आख़िर किन आधारों पर अडानी ग्रुप पर स्टॉक में हेराफेरी करने के आरोप लगाए हैें? हिंडनबर्ग की रिसर्च के बाद आख़िर अडानी ग्रुप बैकफुट पर क्यों है?
सुब्रमण्यम स्वामी की राजनीति को समझना आसान नहीं है। अगर कोई बात या कदम उनके मन का नहीं हुआ तो वो उस मामले में पीछे पड़ जाते हैं। कभी वो जिसके बहुत खिलाफ होते हैं, कई बार उसके पक्ष में भी आ जाते हैं। उनके बयान कब किस तरफ चले जाएं, कोई नहीं जानता। संजय कुमार सिंह ने इसी पर नजर डाली है।
मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी का विदेशी चंद क्यों बंद किया गया और आख़िर क्यों विदेशी चंदे के लिए आवश्यक विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम के तहत नवीकरण नहीं किया गया?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के कई मंत्रियों ने पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के नारे को जोर-शोर से उछाला था। लेकिन क्या हम उस दिशा में आगे बढ़ पाए हैं?
आर्यन मामले में एक गवाह ने आरोप लगाया है कि सौदा 25 करोड़ का था, 18 करोड़ में तय होता और 8 करोड़ समीर वानखेड़े को जाता। एनसीबी ने आरोप खारिज किए तो क्या शाहरूख ख़ान इसकी पुष्टि करेंगे?
सेंट्रल जीएसटी गाज़ियाबाद की टीम ने 115 करोड़ रुपये के लेन-देन के मामले में 21 फर्जी फर्म के माध्यम से 17.58 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का खुलासा किया है। आख़िर जीएसटी सिस्टम में यह छेद क्यों है?
आर्थिक उदारीकरण की 30वीं सालगिरह पर पूर्व वित्त व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने कहा है कि आगे का रास्ता और मुश्किल भरा है तथा देश को अपनी प्राथमिकताएँ फिर से तय करनी होंगी
एक तरफ़ कोरोना टीकों की कमी है तो दूसरी तरफ हर कोई लगवा सकता है और टीके की क़ीमत तय नहीं है। सरकार मुफ्त में किन लोगों को लगवाएगी, यह भी तय नहीं हुआ है, काम शुरू होना तो छोड़िए। आख़िर टीकाकरण की नीति क्या है?
आए दिन अख़बारों में खबर छपती है, जीएसटी वसूली बढ़ी। सरकारी विज्ञप्ति के आधार पर गैर बिज़नेस अख़बारों में भी यह ख़बर पहले पन्ने पर छप जाती है। आज 'द हिन्दू' जैसे अखबार में शीर्षक है, 'जीएसटी वसूली रिकार्ड ऊँचाई पर'।
अख़बारों में ख़बर है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के पूजास्थल क़ानून के ख़िलाफ़ दायर एक याचिका को स्वीकार कर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। आख़िर ऐसा क्यों किया?
केंद्र सरकार वसूली बढ़ने का ढिढोरा तो पीट रही है पर राज्यों का हिस्सा कम हो रहा है यह नहीं बता रही है। वसूली बढ़ने के दावों पर बात नहीं करने के लिए इतना भर ही कम नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों को बेचकर भारी धनराशि एकत्र करने की अपनी योजना का खुलासा किया है। देश की जो आर्थिक स्थिति है, उसमें यह मजबूरी है। आश्चर्य इसमें है कि वो ग़लत तर्क दे रहे हैं कि बिज़नेस करना सरकार का काम नहीं है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस से बचाव की कार्रवाई काफ़ी देर से शुरू हुई। क्रोनोलॉजी से आप जानते हैं कि चीन में इसका पता 31 दिसंबर को चला था और भारत में पहला मामला 30 जनवरी को मिला था।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जितना डराना संभव था, डरा दिया। यह भी कह दिया कि इससे बचने का एक ही तरीक़ा है कि घरों में बंद रहा जाए और इसके लिए लक्ष्मण रेखा का अच्छा उदाहरण दिया पर उसके अंदर रहने में सहायता का कोई आश्वासन नहीं दिया।
भारत की पहले से ख़राब अर्थव्यवस्था में दुनिया की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ कोरोना वायरस का भी असर होना है और यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या कुछ हो सकता है।
निर्मला सीतारमण ने देश की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के लिए पिछली सरकार को ज़िम्मेदार बता दिया है। क्या सिर्फ़ दूसरे को दोष देकर समस्या का समाधान हो जाएगा?
देश का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक साढ़े छह साल में सबसे कम है। जुलाई के मुक़ाबले अगस्त में औद्योगिक विकास 4.3 प्रतिशत से घटकर -1.10 प्रतिशत पर आ गया है। ऐसा क्यों हुआ, सरकार बताएगी?
अगर बाबुल सुप्रियो ‘द टेलीग्राफ़’ पढ़ते तो संपादक को फ़ोन ही नहीं करते। ऐसी धारदार ख़बरें छापने वाला अख़बार अगर फ़ोन करने से डरने वाला होता तो बहुत पहले डर गया होता या फिर विज्ञापन छाप रहा होता।
मंदी के कारणों को समझने और कार्रवाई करने के बजाय कुतर्कों से जीतने की कोशिश की गई और अब वही कार्रवाई की जा रही है जो चुनाव से पहले कर दी जानी चाहिए थी।