इमरजेंसी संविधान के प्रावधानों के अनुसार, समय पर कायदे से लगाई गई थी। इसलिए इमरजेंसी लगाना संविधान विरोधी नहीं हो सकता है। उस समय आरएसएस पर पाबंदी लगी थी, उसे वापस ले लिया गया। पाबंदी लगाना या वापस लेना - संविधान विरोधी ज़रूर हो सकता है। इमरजेंसी पहले भी लगी थी, आरएसएस पर प्रतिबंध भी। इसलिए दोनों ग़लत नहीं हो सकते हैं। हटाने के बारे में मैं अभी बात नहीं कर रहा। वह मुद्दा नहीं है। इमरजेंसी में मनमानी गिरफ्तारियां संविधान विरोधी हो सकती हैं। लेकिन वह मुख्यमंत्री को किसी भी तरह जेल में रखने के लिए किये जा रहे उपायों से ज्यादा संविधान विरोधी नहीं है।
राहुल गांधी को घेरने के लिए अब इमरजेंसी का मुद्दा?
- विचार
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- 29 Jun, 2024

मोदी सरकार और बीजेपी ने आख़िर अब 49 साल बाद आपातकाल का राग इतने बड़े पैमाने पर क्यों छेड़ा? जानिए, इसके पीछे वजह क्या है।
वैसे भी निर्वाचित जन प्रतिनिधि को जेल रखने के लिए सरकारी वकील की सेवाएं लेना या लगाना – जबकि उसके खिलाफ सबूत नहीं है और सरकारी कर्मचारी को भी सरकारी काम करने के लिए छूट व संरक्षण मिलता है ताकि उसके खिलाफ जांच में सरकारी संसाधन व्यर्थ न जाये। यहां यह सब हो रहा है इसलिए हो न हो, मुद्दा तो है। इमरजेंसी में या उस दौरान क़ायदे क़ानूनों का पालन अघोषित इमरजेंसी के मुकाबले बेहतर था। अगर आपको लगता है कि हाईकोर्ट से चुनाव हार जाने के बाद इंदिरा गांधी को इस्तीफा दे देना चाहिये था तो सच यह है कि सुप्रीम कोर्ट में अपील का मौका था और उसका फैसला आने से पहले ही इंदिरा गांधी पर कई तरह के दबाव थे। अगर आपको यह सब जायज और उचित लगता है तो सच यह भी है कि इमरजेंसी के बाद जो सरकार बनी वह पांच साल नहीं चल पाई।