पहलगाम हमले के बाद भारत ने सैन्य अभियान शुरू किया लेकिन चार दिन में ही सीज़फ़ायर की घोषणा हो गयी। अचानक हुए इस ऐलान ने उन लोगों को ख़ासतौर पर निराश किया जो मान कर चल रहे थे कि इस बार पीएम मोदी पीओके को आज़ाद कराके ही मानेंगे। ऊपर से अमेरिकी राष्ट्रपति की इस टिप्पणी ने निराशा और बढ़ा दी कि ट्रेड बंद करने की धमकी देकर उन्होंने सीज़फ़ायर कराया। इस बीच, सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी को याद किया जाने लगा। 1971 के युद्ध में दिखाये गये उनके साहस की तुलना मोदी जी से की जाने लगी।

ये वही इंदिरा गाँधी हैं जिन्हें कोसने में बीजेपी और आरएसएस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन सोशल मीडिया पर वे अचानक छा गयीं। मीम्स और पोस्टों में 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की आंखों में आंखें डालने वाली इंदिरा को याद किया जाने लगा, यह बताते हुए कि वर्तमान नेतृत्व अमेरिकी दबाव के सामने झुक गया। बीजेपी आईटी सेल को यह बर्दाश्त कैसे होता। लिहाज़ा पलटवार करते हुए ये दावा किया जाने लगा कि इंदिरा गांधी ने 1971 में 93,000 युद्धबंदियों के बदले पीओके को आजाद कराने का मौका गवाँ दिया था। लेकिन क्या यह इतना सरल था?