आपने अकसर चैनल मालिकों और संपादकों को यह कहते हुए सुना होगा कि रिमोट तो दर्शकों के हाथ में है, पसंद उनकी है, वे चाहें तो कोई चैनल देखें या न देखें। लेकिन क्या यह इतनी सीधी सी बात है? क्या यह सचमुच में दर्शकों के हाथ में है कि वे चाहें तो किसी चैनल या कोई ख़ास तरीक़े की सामग्री को ठुकरा या स्वीकार कर सकते हैं?
TRP का दुष्चक्र-11: क्या सच में रिमोट दर्शकों के हाथ में है?
- मीडिया
- |
- |
- 6 Nov, 2020

टीआरपी स्कैम ने पूरे मीडिया के स्वरूप पर नये सिरे से चर्चा को जन्म दिया है। इसी क्रम में इस पर भी सवाल उठे हैं कि क्या सच में रिमोट दर्शकों के हाथ में है? यानी क्या दर्शक ही चैनल के कंटेंट तय कर रहे हैं या कोई और? टीआरपी पर सत्य हिंदी की शृंखला की 11वीं कड़ी में पढ़िए किनके हाथ में है टीवी का रिमोट- दर्शक या फिर बाज़ार के हाथ में...
वास्तव में उनकी यह दलील इतनी भोली नहीं है, इस समझाइश में कई तरह के पेंच हैं, जिन्हें समझना ज़रूरी है। पहली बात तो यह है कि ये दर्शकों के सिर पर ठीकरा फोड़ने जैसा है। वे कहना चाहते हैं कि ग़लती दर्शकों की है और चैनल जो कर रहे हैं उसमें कोई खामी नहीं है। ऐसा कहकर मालिक-संपादक अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश भी करते हैं। वे दर्शकों की शिकायतों को दरकिनार करते हुए कहना चाहते हैं कि हम तो ठीक कर रहे हैं और इसी तरह से चैनल चलाएँगे आपको देखना हो देखो, न देखना हो न देखो। यह एक तरह से ख़ुद के सही होने का या सही साबित करने का उपक्रम है। इसमें अहंकार भी छिपा हुआ है और दर्शकों की शिकायतों को न समझने की ज़िद भी।