कोरोना महामारी से हो रही मौतों के बीच सोशल मीडिया पर कुछ नागरिक समूहों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की माँग यह मानकर की जा रही है कि इससे मौजूदा संकट का तुरंत समाधान हो जाएगा। इसके लिए जन-याचिकाओं पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं। याचिकाओं में कोरोना से निपटने में विभिन्न स्तरों पर उजागर हुई सरकार की भीषण विफलताएँ गिनाई जा रही हैं। ऐसी याचिकाओं का इस तरह के कठिन समय में प्रकाश में आना आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसे हरेक संकट में सामाजिक रूप से सक्रिय लोगों की पहल इसी तरह से नागरिकों के मनों और उनके सत्ताओं का प्रतिरोध करने के साहस को टटोलती है।
मोदी को सत्ता में बनाए रखना राष्ट्रीय ज़रूरत है!
- विचार
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- 8 May, 2021


प्रधानमंत्री और उनके आभा मण्डल में सुशोभित हो रहा समर्पित भक्तों का समूह निश्चित ही मानकर चल रहा होगा कि मौजूदा संकट के एक बार गुज़र जाने के बाद सब कुछ फिर से 2014 की तरह हो जाएगा। देश के फेफड़े पूरी तरह से ख़राब हो जाने के बावजूद प्रधानमंत्री उसके विकास की दौड़ को दो अंकों में और अर्थव्यवस्था को ‘फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर’ की बना देंगे।
सच्चाई यह है कि इस समय प्रधानमंत्री से इस्तीफ़े की माँग बिलकुल ही नहीं की जानी चाहिए। मोदी को सात सालों में पहली बार देश को इतने नज़दीक से जानने, समझने और उसके लिए काम करने का मौक़ा मिल रहा है। ऐसा ही नागरिकों के साथ भी है। उन्हें भी पहली बार अपने नेता के नेतृत्व की असलियत को ठीक से परखने का अवसर मिल रहा है। प्रधानमंत्री के पद पर पूरे हो रहे उनके सात साल के कार्यकाल में पहली बार जनता के ग्रहों का योग कुछ ऐसा हुआ है कि मोदी को देश में इतना लम्बा रहना पड़ रहा है। इसी मार्च महीने में अन्यान्य कारणों से आवश्यक हो गई बांग्लादेश की संक्षिप्त यात्रा को छोड़ दें तो नवम्बर 2019 में ब्राज़ील के लिए हुई उनकी 59वीं विदेश यात्रा के बाद से मोदी पूरी तरह से देश में ही हैं।




















