जब रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद दलित क्रोध भड़का था तब क्रिया-प्रतिक्रिया में या सामान्य ढंग से भी दलितों पर अत्याचार के कई मामले सामने आए और सबने मिलकर एक हवा बनाई। यह हवा ऐसी थी कि शासन कर रही भाजपा और उसके पीछे खड़ा संघ परिवार चिंतित हुआ और उन सबने मिलकर इस ग़ुस्से को संभालने के अनेक प्रयत्न किए। इन सबकी चर्चा यहाँ करना उद्देश्य नहीं है पर इसमें रोहित को गैर दलित साबित करने का प्रयास भी शामिल था। अंतिम नतीजे की बात तक यह प्रयास जारी था। लेकिन इस लेखक समेत काफी सारे राजनैतिक पंडित यह मान बैठे कि यह प्रसंग चाहे जहां पहुंचे भाजपा को अब दलित वोट पाने में दिक्कत होगी और उसमें गिरावट तो होगी ही।
वेमुला केस की तरह आंबेडकर मुद्दे को मैनेज कर लेंगे शाह?
- विचार
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- 25 Dec, 2024

2019 के आम चुनाव से पहले रोहित वेमुला के मुद्दे पर बीजेपी दलितों के ग़ुस्से झेल रही थी, लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो कहा गया कि दलितों का वोट बीजेपी से नहीं छिटका। अब क्या आंबेडकर मुद्दे को मैनेज करना बीजेपी के लिए इतना आसान होगा?
लेकिन 2019 आम चुनाव के मतदान के जातिवार विश्लेषणों से यह जाहिर हुआ कि भाजपा को मिलने वाले दलित वोटों में अच्छा खासा इजाफा हो गया है। भाजपा ने राजनैतिक रूप से इसके लिए कोई बड़ा प्रयास भी नहीं किया था। यह संभवत: पुलवामा या मोदी सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों का असर था। और यह प्रतिक्रिया पूरी तरह सामान्य थी-इसमें कोई दलित एंगल न था जबकि आक्रोश दिखाने वाला पूरा जमात आंबेडकरवादियों का था और यह चुनावी परिणाम भाजपा की जगह इस जमात की आम दलित से दूरी को दिखा रहा था। जाहिर तौर पर इसमें पढ़े-लिखे, आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी पाने और जीवन में कुछ सुधार करने वाले वर्ग के लोग ज्यादा थे और कथित ‘अर्बन नक्सल’ समूहों का समर्थन इस नाराजगी को ज्यादा बड़ा दिखा रहा था।