पर्व-त्यौहारों की अपनी अहमियत है। साथ ही यहाँ देवी-देवताओं की महिमा भी इनसे जुड़ी है। वर्ष भर में कितने ही त्यौहार आते हैं लेकिन प्रमुख रूप से तो होली और दिवाली को ही माना और मनाया जाता है, यह मैं इसलिये कह रही हूँ कि इन त्यौहारों का रूप चाहे अलग-अलग तरीक़े का लगे लेकिन मामला उत्सवधर्मी ही रहता है। ये त्यौहार अपने मित्रों, संबंधियों और पड़ोसियों के प्रति सद्भावना दर्शाने के अवसर हैं, नहीं तो व्यक्ति अपने खाने-कमाने में ही उलझा रहता है। शुभकामना देने-लेने का भी मौक़ा नहीं मिल पाता।
वो दिवाली कहाँ गयी जिसमें फसलों का उत्सव होता है!
- विचार
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- 31 Oct, 2024

समय के साथ दिवाली मनाने के तरीक़ों में भी काफ़ी बदलाव आया है। अब कौन पूछता है मिट्टी के दीपक को, कौन जलाता है बाती में ज्योति? इसे पुराना और आउट ऑफ फ़ैशन बताया जाता है और इनकी जगह ले ली है बिजली से ऑन होने वाली रंग-बिरंगी लड़ियों ने। लेकिन इन लड़ियों की रौशनी में ख़ुशी और जिंदगी के असली रंग नहीं हैं।
मैत्रेयी पुष्पा जानी-मानी हिंदी लेखिका हैं। उनके 10 उपन्यास और 7 कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें 'चाक'