महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव के बाद एग्जिट पोल्स एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। इसके पीछे वजह यह है कि एक के अलावा बाक़ी सारे एग्ज़िट पोल्स ने जो नतीजे दिखाए उन्होंने किसी भी तरह के “एरर ऑफ़ मार्जिन” के सिद्धांत यानी आंकलन में ग़लती की सीमा रेखा को पूरी तरह से भंग कर दिया है।
एग्जिट पोल्स की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान!
- विचार
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- 26 Oct, 2019

हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक को छोड़कर सभी एग्ज़िट पोल्स ने कांग्रेस को पूरी तरह निपटा दिया था। कुछ ऐसा ही हाल महाराष्ट्र को भी लेकर था। इस तरह के एग्जिट पोल में “मार्जिन ऑफ़ एरर” की अवधारणा की धज्जियाँ उड़ा दी गई हैं। सवाल यह खड़ा होता है कि क्या इन एग्ज़िट पोल्स का मक़सद किसी एक ख़ास पार्टी या नेता के पक्ष में माहौल बनाना है।
एग्ज़िट पोल्स चुनाव के दौरान मतदाताओं के विचार पढ़ने का एक लोकतांत्रिक उपक्रम है। सबसे पहले नीदरलैंड में और अमेरिका में क़रीब 1940 के आस-पास मतदान के बाद और ग़िनती के पहले ही नतीजों का संकेत देने वाल यह उपक्रम प्रचलित हुआ। इस तरह के प्रयास धीरे-धीरे एक स्वनियंत्रित आज़ाद संस्था का रूप धर ले गए और दुनिया की हर लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहाँ चुनाव होते हैं इनकी उपयोगिता सामने आने लगी। बाद में तमाम जगह इन पर नियंत्रण भी हुए क्योंकि कई बार यह देखने में आया कि ये चुनाव प्रक्रिया के एक हिस्से को प्रभावित करने लगे थे।